अनिल जैन। पिछले 25 वर्षों से अपने भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए महाविद्यालयीन अतिथि विद्वानों ने हर मंत्री,मुख्यमंत्री के चौखट पर मत्था टेका लेकिन आज तक उनकी सुनवाई नहीं हुई।अतिथि विद्वानों से चुनाव से पहले पार्टियां वादों की झड़ी लगा देती हैं कि जैसे ही हमारी सरकार बनेगी हम आपको पहली ही कैबिनेट में नियमितीकरण का तोहफ़ा देंगे लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण मुद्दे पर ही सरकार बनती हैं सरकार गिरती है लेकिन जैसे ही सत्ता में आते हैं तो अतिथि विद्वानों को भूल जाते हैं।
वर्तमान राजनैतिक उथल पुथल के केंद्र में अतिथि विद्वान ही रहे हैं।कांग्रेस ने नियमितीकरण का वचन 17.22 दिया था। वचन पत्र को गीता कुरान को जैसा बताया था वहीं शिवराज सिंह चौहान ने अतिथि विद्वानों के शाहजहानी पार्क के आंदोलन में आकर वादा किया था कि अतिथि विद्वानों की लड़ाई अब "टाइगर" लड़ेगा। शिवराज सिंह ने कहा था कि एक पल की देरी के बिना अतिथि विद्वान नियमितीकरण का फैसला होना चाहिए। सत्ता बदली पर नहीं बदली तो अतिथि विद्वानों किस्मत।अतिथि विद्वानों की झोली अब भी खाली है।
संघ के अध्यक्ष वा मोर्चा के संयोजक डॉ देवराज सिंह ने कहा कि बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों हमारी मांगो को हमारी पीड़ा को जानते हैं,समझते हैं लेकिन तब जब विपक्ष में रहते हैं तब तक।जैसे ही सत्ता मिलती हैं तो तुरंत भूल जाते हैं इसलिए मेरा अनुरोध है कि हमारी पीड़ा दर्द को समझते हुए न्याय करें हमारा पुनर्वास करें।
हजारों विद्वानों को सरकार 7 महीने में नहीं दे पाई रोजगार
आज भी पिछले 10 महीने से बेरोजगार फालेन आउट अतिथि विद्वानों को सरकार सेवा में वापस नहीं ले पाई जो वास्तव में शिवराज सरकार की नियत पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।संघ के मीडिया प्रभारी डॉ आशीष पांडेय ने बताया कि कांग्रेस सरकार में ही 450 पदों की कैबिनेट से मंजूरी मिल गई थी लेकिन वर्तमान सरकार पिछले 7 महीने से उन्ही पदों को रोक कर रखी है जो कि समझ से परे है।डॉ पांडेय ने सरकार से गुहार लगाते हुए कहा कि बाहर हुए अतिथि विद्वानों को सरकार व्यवस्था में ले जिससे लगातार हो रही अतिथि विद्वानों की आत्महत्या रुके।
उप चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएंगे अतिथि विद्वान अपने लाखों युवा छात्रों के साथ
संघ के प्रवक्ता डॉ मंसूर अली ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि प्रदेश में करोड़ों युवाओं का भविष्य सुरक्षित करने वाले,युवाओं का नेतृत्व करने वाले महाविद्यालय के अतिथि विद्वान युवाओं को बताएंगे कि कैसे उनके गुरुओं के साथ ये सरकारें पिछले 25 वर्षों से छल कपट कर रही हैं।अतिथि विद्वानों के नाम पर पार्टियां सत्ता में आती हैं और सत्ता मिलने पर अतिथि विद्वानों के मुद्दे पर बात करना तक उचित नहीं समझती हैं।आज अतिथि विद्वानों की दुर्दशा किसी से भी छुपी नहीं है। उप चुनाव से पहले किसी ठोस कदम की अपेक्षा है।
लेखक अनिल जैन स्वयं अतिथि विद्वान हैं।