मध्यप्रदेश उपचुनाव के प्रचार अभियान के दौरान कमलनाथ कैंप की तरफ से एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल किया गया है। इस वीडियो के कुछ अंश कमलनाथ अपने भाषणों में भी उपयोग कर रहे हैं। वीडियो का टाइटल है 'मेरी क्या गलती थी' और वीडियो के थंबनेल में कमलनाथ का फोटो है। मध्यप्रदेश में 15 सालों के बाद बनी कांग्रेस की सरकार मात्र 15 महीनों में क्यों गिरी और कमलनाथ का क्या कसूर था इस पर सरकार गिरने के बाद काफी समीक्षा हो चुकी है लेकिन जब एक बार फिर कमलनाथ ने सवाल किया है तो जवाब भी आने लगे हैं। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता से गोपनीयता की शर्त का पालन करते हुए पत्रकार दीपक गोस्वामी ने उनके साथ हुई बातचीत का खुलासा किया है।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के टूटने के बाद भी कमलनाथ का व्यवहार जोड़ने वाला नहीं था
पार्टी में टूट (ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं विधायकों का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होना) के बाद भी जो विधायक हमारे साथ बने रहे, कमलनाथ को उनके प्रति उत्साह दिखाकर उनमें जोश भरने के लिए प्रयास करना चाहिए थे लेकिन उन्होंने विधायकों को हतोत्साहित करने वाला बयान दिया। कमलनाथ ने कहा कि पार्टी छोड़कर जाने वाले विधायकों की मुझे कोई चिंता नहीं है। पार्टी के मुखिया का ऐसा बर्ताव तो कभी नहीं होना चाहिए कि वे कहें कि पार्टी छोड़कर जाने वाले विधायकों की मुझे कोई चिंता नहीं है। ऐसा बर्ताव करने पर तो बचे हुए विधायक भी छिटक जाएंगे।’ अगर कमलनाथ ने अपने विधायक, मंत्रियों व पार्टी नेताओं को पर्याप्त समय और सम्मान दिया होता तो सत्ता जाती ही नहीं।
सरकार और सत्ता के सभी पदों पर कमलनाथ कुंडली मारकर बैठ गए थे
श्री गोस्वामी के अनुसार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ पदाधिकारी ने उन्हें बताया कि ‘हमारी सरकार गिरी ही इसलिए क्योंकि कमलनाथ सभी पदों पर कुंडली मारकर बैठ गए थे। प्रदेशाध्यक्ष और मुख्यमंत्री के पद को छोड़ भी दें तो संगठन, विभिन्न निगम, मंडलों आदि में करीब दो सैकड़े से अधिक पद ऐसे थे कि अगर तब उन्हें पार्टी के पहली पंक्ति के नेताओं और असंतुष्ट विधायकों में बांट दिया गया होता, तो शायद पार्टी के लिए हालात इतने नहीं बिगड़ते।’
मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ का घमंड सातवें आसमान पर था
वे आगे जोड़ते हैं, ‘कमलनाथ का घमंड सातवें आसमान पर था। विधायक की तो बात ही छोड़ दो, प्रदेश में पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं, यहां तक कि मंत्रियों के साथ जो व्यवहार किया जा रहा था, उसी के चलते असंतोष पनपा।’ अनेक मौकों पर उनके नेतृत्व पर सवाल उठे थे। विधायक तो बहुत बाद में गए, पार्टी से जुड़े अन्य लोगों का मोहभंग कांग्रेसी सरकार के गठन के साथ ही शुरू हो गया था।
अजय दुबे और आनंद राय जैसे एक्टिविस्ट के साथ यूज एंड थ्रो की पॉलिसी
2018 से पहले सरकार के खिलाफ जबरदस्त लड़ाई लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे और व्यापम घोटाले के व्हिसल ब्लोअर आनंद राय को बड़ी चतुराई के साथ चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी में शामिल किया गया। और कांग्रेस की सरकार का गठन होते ही दोनों को हाशिए पर धकेल दिया गया। जिन मुद्दों को लेकर दोनों एक्टिविस्ट शिवराज सिंह सरकार के खिलाफ थे, उन मुद्दों पर कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने कोई कदम नहीं उठाए।
शिवराज सरकार के भ्रष्टाचार के प्रति कमलनाथ कर रुख काफी नर्म था: अजय दुबे
अजय दुबे का कहना है कि, ‘सरकार बनने के बाद कमलनाथ ने ‘एंटी ट्रांसपेरेंसी’ रुख अपना लिया था। जैसे कि सूचना आयोग में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को ठेंगा दिखाकर सूचना आयुक्त की कुर्सी पर अपना आदमी बैठा दिया। वाइल्ड लाइफ बोर्ड में पूंजीपतियों को प्रवेश दिया। आरटीआई का आवेदन दस गुना महंगा कर दिया (यानी किसी को दूसरी अपील करनी हो तो 1,000 रुपये चुकाए)। सर्विस कमीशन को सही रिफॉर्म नहीं किया। भाजपा के भ्रष्टाचार की जांच के लिए जनायोग का वादा पूरा नहीं किया।’ शिवराज सिंह सरकार के घोटालों पर कमलनाथ का रुख काफी नर्म था। कमलनाथ मैनेजमेंट करके चल रहे थे, भाजपा को नाराज करना नहीं चाहते थे और गुड गवर्नेंस उनकी प्राथमिकता नहीं थी। उन्हें आरोप-पत्र के बारे में बात करना तक पसंद नहीं था, मतलब कि वे भाजपा से डरते थे या उसके खिलाफ कोई जांच नहीं चाहते थे।
मैंने नरोत्तम मिश्रा का स्टिंग ऑपरेशन किया था, कमलनाथ वीडियो पर कुंडली मारकर बैठ गए: डॉ आनंद राय
आनंद राय कहते हैं, ‘मैंने कांग्रेस सरकार बनने के दो महीने बाद ही नरोत्तम मिश्रा पर स्टिंग किया था जहां वे खुलकर विधायकों की खरीद-फरोख्त का सौदा कर रहे थे। इसका वीडियो कमलनाथ को सौंप दिया। वे एक साल तक उस पर कुंडली मारे बैठे रहे। शायद उन्होंने नरोत्तम से हाथ मिला लिया था लेकिन जब साल भर बाद उन्हीं नरोत्तम के कारण सरकार गिरने लगी, तब वे वीडियो दिखाने लगे।’