देश के सुप्रीम कोर्ट ने खेतों में पराली जलाने के विरुद्ध दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए केंद्र व निकटवर्ती राज्यों हरियाणा, पंजाब, यूपी तथा दिल्ली सरकारों को जवाब दाखिल करने को कहा है। ये सारी राज्य सरकारें और केंद्र सरकार भी भलीभांति जानती हैं कि दिल्ली-एनसीआर इलाके में प्रदूषण की समस्या तब ज्यादा जटिल हो जाती है जब धान की फसल के बाद किसान खेतों में पराली जलाने लगते हैं।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.ए. बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन जजों की खंडपीठ ने चेताया कि यदि समय रहते इस दिशा में कोई कार्रवाई न हुई तो स्थिति खराब हो जायेगी। इस मामले पर अगली सुनवाई १६ अक्तूबर को होगी । देश में कोविड-१९ की महामारी फैली हुई है, प्रदूषण समस्या इसे और विकट बना सकती है। सब जानते हैं, तमाम प्रयासों व दावों के बावजूद खेतों में पराली जलाने की समस्या काबू में नहीं आ रही है।
पंजाब के किसानों की शिकायत है कि राज्य सरकार उन्हें अपने वादे के मुताबिक अवशेष को न जलाने के बदले में मुआवजा देने में असफल रही है। मौजूदा हालात में वे पराली के निस्तारण के लिये खरीदी जाने वाली मशीनरी हेतु ऋण भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं। वहीं मुख्यमंत्री का दावा है कि उन्होंने पराली प्रबंधन की लागत कम करने के लिये केंद्र सरकार के साथ मिलकर कार्य किया है। हकीकत यह है खेती में मानव श्रम की हिस्सेदारी कम होने और कृषि मशीनरी के अधिक उपयोग से पराली की समस्या विकट हुई है। पंजाब में पराली जलाने से रोकने की निगरानी हेतु राज्य में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति हुई है। इन नोडल अधिकारियों का दायित्व है कि वे पराली के निस्तारण हेतु उपकरण उपलब्ध कराने, पराली की उपज का अनुमान लगाने और मुआवजे को अंतिम रूप देने का दायित्व निभायें। केंद्र द्वारा हाल में लाये गये किसान सुधार बिलों के खिलाफ पंजाब में जारी आंदोलन के बीच इस समस्या का निबटारा भी एक बड़ी चुनौती है। यह सुझाव भी सामने आया था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ उन्हीं किसानों को मिले जो पराली का निस्तारण ठीक ढंग से करते हैं।
खेतों में पराली या अन्य प्रकार के अवशेष जलाने से रोकने के लिये किसानों को जागरूक करने की भी जरूरत है। किसानों को दंडित किये जाने के बजाय उनकी समस्या के निस्तारण में राज्य तंत्र को सहयोग करना चाहिए। विडंबना ही है कि पराली जलाने के कारगर विकल्प के लिये केंद्र व राज्य सरकारों की तरफ से समस्या विकट होने पर ही पहल की जाती है, जिससे समस्या का कारगर समाधान नहीं निकलता। बड़ा कारण यह भी है कि साल के शेष महीनों में समस्या को गंभीरता से नहीं लिया जाता।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने एक सस्ता और सरल उपाय तलाशा है। उसने एक ऐसा घोल तैयार किया है, जिसका पराली पर छिड़काव करने से उसका डंठल गल जाता है और वह खाद में बदल जाता है।
पराली जलाने की प्रक्रिया में कॉर्बनडाइऑक्साइड व घातक प्रदूषण के कण अन्य गैसों के साथ हवा में घुल जाते हैं जो सेहत के लिये घातक साबित होते हैं। पराली जलाने से होने वाले धुएं में पंजाब व हरियाणा की हिस्सेदारी ४६ प्रतिशत एक सर्वे में बतायी गई थी, जिसमें अन्य कारक मिलकर समस्या को और जटिल बना देते हैं। यह जटिल होती समस्या हवा की गति, धूल व वातावरण की नमी मिलकर और जटिल हो जाती है। इस दुष्काल में कृषि,निर्माण और अन्य औद्योगिक गतिविधियों पर निगरानी की जरूरत होती है जो प्रदूषण बढ़ाने में भूमिका निभाते हैं। दीवाली का त्योहार भी करीब है, समस्या के विभिन्न कोणों को लेकर गंभीरता दिखाने की जरूरत है। साथ ही किसानों को जागरूक करने की भी जरूरत है|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।