वैसे तो मार्च के बाद हर दिन उगने- डूबने वाला सूरज एक निराशा के साथ अस्ताचल को जाता था | आगे क्या होगा ? का सवालिया निशान अपना टेढ़ा मुंह खड़े खड़ा रहता था | इसी दौरान 25 सितंबर 2020 को रिजर्व बैंक के आंकड़ों से आई खबर ने राहत दी है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार 542 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। इसमें 653 मीट्रिक टन सोने का भंडार भी शामिल है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा भंडार का अहम योगदान होता है। याद कीजिये, वर्ष 1991 में जब चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री थे, तब हमारे देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। तब देश के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ने 47 टन सोना विदेशी बैंकों के पास गिरवी रख कर कर्ज लिया था।आज सोने के भंडार के मद्देनजर भारत दुनिया में 9 वें स्थान पर है और विदेशी मुद्रा भंडार की ऊंचाई भारत के लिए लाभप्रद दिखती है।
इस यात्रा की शुरुआत भी वर्ष 1991 में नयी आर्थिक नीति से हुई, जिसका उद्देश्य वैश्वीकरण और निजीकरण को बढ़ाना रहा। इस नीति के पश्चात धीरे-धीरे देश के भुगतान संतुलन की स्थिति सुधरने लगी। वर्ष 1994 से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने लगा। 2002 के बाद इसने तेज गति पकड़ी। वर्ष 2004 में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 100 अरब डॉलर के पार पहुंचा। फिर इसमें लगातार वृद्धि होती गई और 5 जून, को विदेशी मुद्रा भंडार ने 501 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर को प्राप्त किया। 25 सितंबर 2020 को 542 अरब डॉलर की ऊंचाई पर पहुंच चुके विदेशी मुद्रा भंडार के और बढ़ने की संभावनाएं दिख रही हैं।भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने के अनेक कारण हैं। दुनिया भर के बड़े देशों के सेंट्रल बैंकों ने जिस तरह अपने विदेशी मुद्रा कोष में गोल्ड रिजर्व बढ़ाया है, उसी तरह रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी वर्ष 2018 से गोल्ड रिजर्व तेजी से बढ़ाया है।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में गोल्ड रिजर्व करीब 653 मीट्रिक टन के स्तर पर है, पर खर्चों पर भी ध्यान जरूरी है भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरतों का 85 प्रतिशत आयात करता है और इस पर सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च होती है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में कमी विदेशी मुद्रा भंडार के लिए लाभप्रद रही है। देश में कोविड-19 के कारण मार्च 2020 से लागू लॉकडाउन की वजह से जून 2020 तक पेट्रोल-डीजल की डिमांड कम हो गई थी, इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट ने भी विदेशी मुद्रा भंडार के व्यय में कमी की है। इसी तरह सोने के आयात में लगातार कमी से भी विदेशी मुद्रा के व्यय में कमी आई है। देश के आयात बिल में सोने के आयात का प्रमुख स्थान है। पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में सोने का आयात घटने से विदेशी मुद्रा की बड़ी बचत हुई है।
सरकार ने आयात घटाने और निर्यात बढ़ाने के भी कई कदम उठाए हैं। इससे देश के विदेश व्यापार घाटे की चुनौती में कमी आई है और विदेशी मुद्रा भंडार को लाभ हुआ है। खासतौर से चीन से आयात कम हुए हैं और चीन के साथ व्यापार घाटे में कमी आने से भी विदेशी मुद्रा भंडार लाभान्वित हुआ है। देश में लॉकडाउन के कारण विभिन्न वस्तुओं की मांग में गिरावट के चलते आयात भी काफी कम हुआ है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार से कम व्यय करना पड़ा है।
कोविड-19 के दुष्काल के बीच भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के इस ऊंचाई पर पहुंचने से भारत के लिए कई लाभ चमकते हुए दिखाई दे रहे हैं। कोविड-19 की अकल्पनीय आपदा से बेहतर ढंग से निपटने में विदेशी मुद्रा भंडार की प्रभावी भूमिका है। दुष्काल से निबटने में यह भंडार देश के काम आये सरकार को इस ओर गंभीरता से सोचना चाहिए |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।