भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के आसपास 45 बाघों का मूवमेंट देखा गया है। इनमें नर और मादा दोनों शामिल है। इनके अलावा 12 शावक भी है। इस बारे में पहली बार वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने आंकड़े सार्वजनिक किए हैं। बड़ी खबर यह है कि कुछ टाइगर भोपाल शहर की तरफ बढ़ रहे हैं, क्योंकि जंगल छोटा है और छोटे जंगल में इतने सारे टाइगर अपना इलाका बनाकर नहीं रह सकते। इसलिए वह भोपाल शहर में रहना चाहते हैं।
चौंकाने वाली बात: बाघ बिना टेरिटोरियल फाइट के अपना कुनबा कैसे बढ़ा रहे हैं
भोपाल-सीहोर में करीब 19 बाघ हैं। रातापानी सेंचुरी भी देश में पहली ऐसी सेंचुरी बनी है, जहां पर बाघों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। अब यहां के बाघों के स्वभाव के संबंध में रिसर्च की जा रही है। इसमें यह देखा जाएगा कि इलाका कम होने के बावजूद भी बाघ बिना टेरोटोरियल फाइट के अपना कुनबा कैसे बढ़ा रहे हैं।
पाल के आसपास जंगलों में 80 से अधिक गुफाएं
भोपाल के आसपास बाघों की उपस्थिति को लेकर तत्कालीन पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ जितेंद्र अग्रवाल ने सर्वें कराया तो यहां पर 80 से अधिक गुफाएं जंगल में मिली। जहां पर बाघिनें शावकों को सुरक्षित रूप से जन्म देने आती थी। इसके बाद यहां की कुछ गुफाओं को बंद करा दिया गया था। ताकि बाघ रहवासी इलाके में ज्यादा मूवमेंट न कर सके।
19 बाघों का मूवमेंट है भोपाल के समरधा, सीहोर के झिरी में
8 बाघिनें शावकों के साथ.. वर्तमान में असंरक्षित क्षेत्र भोपाल के मिंडोरा में एक, झिरी में एक, रातापानी में 4 और सिघौंरी सेंचुरी में 2 बाघिनें शावकों के साथ देखी जा रही हैं।
बाघ अपना इलाका बढ़ाने के लिए भोपाल की ओर आ रहे हैं
भोपाल के आसपास घूम रहे बाघ अब टेरीटरी बढ़ाने के लिए शहर की ओर बढ़ रहे हैं। इन्हें जंगल तक रोकने के लिए 10 किमी तक चेनलिंक फेंसिंग लगाने का काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है। अमरनाथ काॅलाेनी के पास से चिचली बैरागढ़ तक चेनलिंक फेंसिंग का प्रस्ताव पिछले 5 साल से रुका हुआ था। इस बीच भाेपाल फारेस्ट सर्किल के तीन सीसीएफ बदल चुके और चार रेंजर बदल चुके हैं।
580 ट्रैप कैमराें से निगरानी
मिंडोरा, झिरी, औबेदुल्लागंज वन डिवीजन के डीएफओ विजय कुमार ने बताया कि रातापानी सेंचुरी में देलावाड़ी, बरखेड़ा, दाहोद में बाघिनों ने शावकों को जन्म दिया है। वनविभाग 580 ट्रैप कैमरों से इन पर निगरानी रखे हुए है।
यह काफी सुखद है
रातापानी सेंचुरी भी बाघों की संख्या के मामले में पहले नंबर पर है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने इस संबंध में आंकड़े जारी किए हैं। यह काफी सुखद है। -आलोक कुमार, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ