मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage), जीन पियाजे (A Swiss Psychologist) के अनुसार यह अवस्था लगभग 7 से 11 वर्ष तक होती है। इससे पहले वाली अवस्था को पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (pre operational stage) कहते हैं। अब बच्चा पहले वाली अवस्था से धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगता है। अभी तक जहां वह अपने आप को ही दुनिया का केंद्र समझता था, अब वह थोड़ा सामाजिक या सोशल होने लगता है। इस अवस्था को school age या Gang age भी कहा जाता है। हालांकि वर्तमान समय में स्कूल एज 2, 3 वर्ष के बाद ही स्टार्ट हो जाती है, परंतु जीन पियाजे के अनुसार 6 से 7 वर्ष की उम्र ही स्कूल जाने की सही उम्र मानी जाती है।
मूर्त संक्रियात्मक अवस्था का अर्थ होता है कि अब बच्चा उन चीजों और वस्तुओं के बारे में समझता है जो उसके सामने हैं, जिन्हें वह देख सकता है, महसूस कर सकता है, छू सकता है। अब वह इन वस्तुओं के लिए तर्क (logic) लगा पाता है। इससे पहले वह केवल एक बार में एक ही चीज पर फोकस कर पा रहा था परंतु अब वह एक बार में एक से अधिक चीजों पर भी फोकस कर सकता है। पहले जहां वाह टेढ़े-मेढ़े लॉजिक लगा रहा था, अब वह रियल लॉजिक लगाने लगता है। पहले उसमें परिवर्तनशीलता का गुण नहीं था अर्थात वह 5 + 4 = 9 समझता था परंतु 5+2+2=9 नहीं समझता था, परंतु अब इस अवस्था में वह यह समझने लगता है।
इससे पहले वाली अवस्था में यदि बच्चे को उसकी पसंद की कोई चीज जैसे -जूस, आइसक्रीम दो अलग-अलग shape, size के बर्तनों में दी जाए तो वह, वही लेगा जो उसे बड़ी या लंबी दिखाई देगी परंतु अब इसे स्टेज में उसे समझ में आ जाएगा कि दोनों बर्तनों में ही बराबर मात्रा में वस्तु है और वह कोई सी भी ले लेगा।
इसका एक और उदाहरण दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में जब नोट के बदले सिक्के दिए जाते हैं तो यदि बच्चा पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (2 से 6 वर्ष) में है उसे नोट कम लगेगा और सिक्के ज्यादा लगेंगे। जबकि संक्रियात्मक अवस्था में आने पर (7 से 11 वर्ष ) उसे समझ में आ जाएगा कि ₹10 के नोट के बदले ही 10 सिक्के दिए जाते हैं जो कि बराबर है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article