क्या पुलिस अधिकारी को किसी अपराध की जाँच करने का अधिकार है, जानिए कानूनी भाषा -ASK CRPC

Bhopal Samachar
वैसे तो कानूनी भाषा को समझना आम लोगों के बस की बात नहीं होती है आज हम आपको थोड़ी कानूनी भाषा को समझाने की कोशिश करते हैं। जैसे:- जाँच, अन्वेषण, खोज, जांच-पड़ताल आदि शब्द एक दूसरे के पयार्यवाची या समान अर्थ होते हैं। पर कानूनी भाषा में इनका अर्थ अलग अलग होता हैं। 

सवाल यह हैं:-  क्या किसी पुलिस अधिकारी को किसी अपराध में जाँच करने का अधिकार है,  इसका जबाब है नहीं। कोई भी पुलिस अधिकारी किसी भी अपराध की जाँच नहीं करता है न ही उसे जांच करने का अधिकार होता है, वह किसी भी अपराध का अन्वेषण (Investigation) करता है।

जानिए क्या है कानूनी भाषा में अन्वेषण, जाँच, विचारण का अर्थ:-

1. अन्वेषण (Investigation):-  अन्वेषण की सभी कार्यवाहियों पुलिस अधिकारी द्वारा की जाती है। किसी अधिकारी को किसी अपराध को डील(व्यवहार) करने की शक्ति दी गई हो वह अपने अधिकार के अंतर्गत अपराध का अन्वेषण कर सकता है। पुलिस अधिकारी को अपराध का  अन्वेषण करने का आदेश मजिस्ट्रेट या कोई उच्च श्रेणी का अधिकारी दे सकता है। लेकिन वह मजिस्ट्रेट स्वयं अन्वेषण नहीं करेगा। अन्वेषण के अंतर्गत किसी विषय या बातो के तथ्यों की सही जानकारी का पता लगाना, किसी जानकारी को खोजना, पड़ताल करना, ढूढना या छानबीन करना, अज्ञात व्यक्ति, वस्तु का पता लगाना आदि।

स्टेट इंस्पेक्टर ऑफ़ पुलिस बनाम सूर्य संकर्मकारी वाद:-

न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि पुलिस अधीक्षक द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988  की धारा 17 के अधीन अन्वेषण करने हेतु किसी अधिकारी को अधिकृत किया जाना लिखित होना चाहिये,किसी मौखिक निदेश दिए जाने की व्यवस्था अधिनियम के अनुसार मान्य नहीं होगी।

2. जाँच (Inquiry):-  जाँच हमेशा मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा की जाती हैं, पुलिस जब अन्वेषण को पूरी कर लेती है तब न्यायालय जांच करके कुछ तथ्यों की सत्यता या असत्यता को निश्चित करती है। और आपराधिक मामले की दूसरी अवस्था होती है जांच। जाँच एक न्यायिक कार्यवाही होती है। जाँच मे किसी घटना या विषय के मूल कारणों या रहस्यों का पता लगाने की योग्यता,विशेषता,सामर्थ्य,गुण आदि जानने के लिए अच्छी तरह से देखने या परखने की क्रिया या भाव को जाँचा जाता है।
''अगर कोई व्यक्ति पुलिस अन्वेषण से असंतुष्ट है तो वह उस मामले की न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा जाँच करवा सकता है। पुलिस अन्वेषण और जाँच दोनो साथ भी चल सकती है।

3. विचारण (Trial):- अन्वेषण और जाँच के बाद कोई भी अपराध का विचारण किया जाता हैं। विचारण के लिए मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायाधीश द्वारा किसी अपराध को मुक्त करना या मामले को सौपना होता है। विचारण निश्चित रुप से आरोपी या संदिग्ध व्यक्ति को दोषमुक्त या दोषसिद्धि में ही समाप्त होता है। यह भी एक न्यायिक कार्यवाही होती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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