अक्सर कहा जाता है कि नाक से सांस लेनी चाहिए क्योंकि नाक से सांस लेने पर केवल ऑक्सीजन अंदर जाती है जबकि मुंह से सांस लेने पर ऑक्सीजन के साथ कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन आदि गैस भी शरीर के अंदर चली जाती है। सवाल यह है कि नाक में ऐसा क्या होता है जिसके कारण केवल ऑक्सीजन अंदर जाती है और बाकी सारी गैस बाहर रह जाती है। क्या कान के परदे की तरह नाक में भी कोई पर्दा या फिल्टर होता है। आइए पता लगाते हैं:-
दिल्ली के प्रसिद्ध नाक कान गला विशेषज्ञ से बात करने के बाद पत्रकार श्री अरविंद दुबे ने अपनी एक रिसर्च रिपोर्ट में बताया है कि यह धारणा गलत है कि नाक से सांस लेने में केवल ऑक्सीजन ही अंदर जाती है। जब हम नाक से सांस लेते हैं तो 79% नाइट्रोजन और 21% ऑक्सीजन तथा 0.04% कार्बन डाइऑक्साइड हमारे फेफड़ों में पहुंचती है। फेफड़ों में लाखों छोटे-छोटे वायुकोष्ठ होते हैं। नाक के जरिए फेफड़ों में पहुंची सभी प्रकार की गैस फेफड़ों के वायुकोष्ठों में जमा हो जाती है और फिर जब आप श्वास छोड़ते हैं तो केवल ऑक्सीजन फेफड़ों में जमा रह जाती है और बाकी सारी गैस (नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड एवं थोड़ी सी मात्रा में ऑक्सीजन आदि) बाहर निकल जाती है। फेफड़ों में जमा ऑक्सीजन हमारे खून में मिल जाती है। इस प्रक्रिया को रक्त की शुद्धि कहा जाता है।
तो फिर डॉक्टर और वैद्य आदि नाक से सांस लेने की सिफारिश क्यों करते हैं
नाक से सांस लेने से शरीर को नाइट्रिक ऑक्साइड मिलती है। इसे फेंफड़ों से ठीक से काम करने और ऑक्सीजन ग्रहण करने में मदद मिलती है। नाइट्रिक ऑक्साइड का काम होता है ऑक्सीजन को शरीर के जरूरी हिस्से तक पहुंचाना। नाइट्रिक ऑक्साइड एंटीफंगल, एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल होती है। यानी इससे बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
नाक, किसी भी प्रकार की गैस को फेफड़ों तक जाने से नहीं रोकती लेकिन नाक एक तरह से फिल्टर का काम करती है और हवा में मौजूद छोटे कणों को फेफड़ों तक जाने से रोकती है। यही कारण है कि नाक के अंदर बाल होते हैं। नाम से सांस लेते हैं तो फेफड़ों और श्वास नली में नमी (moisture) जाती है यानी सूखेपन (dryness) की समस्या नहीं होती है। ठंड के मौसम में नाक से सांस लेना इस तरह फायदेमंद होता है कि फेफडों तक पहुंचते-पहुंचते हवा गर्म हो जाती है।
नाक और मुंह से सांस लेने में क्या अंतर है, क्या फायदा, क्या नुक्सान
नाक को (नासा मार्ग, नाक के बाल, श्वास नली; nasal passage, nose hair, treachea) के माध्यम से इस प्रकार से डिजाइन किया गया है कि वह सीधे जाकर फेफड़ों (lungs) में खुलती है। जबकि मुंह का मुख्य कार्य पाचन की प्रक्रिया को शुरू करना होता है। नाक में एक विकसित प्रतिरक्षा तंत्र यानी इम्यून सिस्टम पाया जाता है जो कि मुंह में नहीं पाया मुंह में नहीं पाया जाता।
इसी कारण मुंह से सांस लेने के कारण कई बार खर्राटे की समस्या होने लगती है। मुंह से सांस लेने के कारण हमारी हड्डियों में लैक्टिक एसिड जमा हो जाता है जिसके कारण दर्द या ऐठन (cramps) होने लगते हैं, इसी कारण नाक से सांस लेना ही उचित है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article (current affairs in hindi, gk question in hindi, current affairs 2019 in hindi, current affairs 2018 in hindi, today current affairs in hindi, general knowledge in hindi, gk ke question, gktoday in hindi, gk question answer in hindi,)