ग्वालियर दुर्ग परिसर में ही एक और दुर्लभ बावड़ी स्थित है - एक पत्थर की बावड़ी। इस अद्भुत वास्तु कौशल से निर्मित बावड़ी का निर्माण तत्कालीन तोमर शासक डूंगरेंद्र सिंह और कीर्ति सिंह (1394-1520) ने कराया । इसकी खासियत यह है कि इसका निर्माण एक ही पत्थर पर काटकर किया गया है । तात्कालीन शासक जैन धर्मावलंबी थे लिहाजा उन्होनें इसमें भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासनस्थ प्रतिमा भी निर्मित कराई। दुर्ग परिसर में स्थित यह स्थल देशभर के जैन धर्मावलंबियों का बड़ा तीर्थ क्षेत्र है।
ग्वालियर किले के बाहरी भाग में किले की दीवाल पर लगे हुए निचले भू-भाग पर एक पत्थर से निर्मित प्राचीन बावड़ी स्थित है। बावड़ी का निर्माण एक ही पत्थर से हुआ है इसलिए इसे एक पत्थर की बावड़ी कहते हैं। बावड़ी की लम्बाई 20 फुट एवं चैड़ाई 20 फुट है। जिसमें आज भी शुद्ध जल प्राप्त होता है। बावड़ी अत्यंत प्राचीन है वर्तमान में बावड़ी में सुरक्षा की दृष्टि से लोहे का चैनल गेट लगाया गया है। सुरक्षा की दृष्टि से बावड़ी में प्रवेश किया जाना वर्तमान में वर्जित है। बावड़ी के जल को आज भी प्रयोग में लाया जाता है।
गंगोला ताल:- दुर्ग पर ही स्थित तालनुमा इस बावड़ी का निर्माण 8 वीं सदी में किया गया । इसका नाम राजा मानसिंह कालीन गंगू भगत के नाम पर पड़ा । माना जाता है कि इससे निकले पत्थरों से तेली का मंदिर बनवाया गया।