इंदौर। 200 साल पहले इंदौर में शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा संस्कृत महाविद्यालय इन दिनों किसी शासकीय मिडिल स्कूल से भी बदतर हालत में है। जबकि इस कॉलेज में अनलिमिटेड एडमिशन दिए जा रहे हैं। संस्कृत महाविद्यालय में चल रही गड़बड़ियों के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की गई है। हाईकोर्ट ने शासन को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
संस्कृत महाविद्यालय इंदौर की स्थापना 1819 में हुई थी
हाई कोर्ट में यह जनहित याचिका कॉलेज के पूर्व छात्र विनीत तिवारी ने वरिष्ठ अभिभाषक विनय सराफ और रिजवान खान के माध्यम से दायर की है। याचिका में कहा है कि संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना 1819 में हुई थी। इसका उद्देश्य आने वाली पीढ़ी को संस्कृत की शिक्षा देना और अपनी संस्कृति से अवगत कराना था।
संस्कृत महाविद्यालय इंदौर में अनलिमिटेड एडमिशन दिए जा रहे हैं
कुछ सालों से कॉलेज में तय संख्या से अधिक प्रवेश दिए जा रहे हैं। इससे व्यवस्थाएं गड़बड़ा गई हैं। कॉलेज में बीए और एमए की 60-60 सीटें हैं, लेकिन 2018-19 में बीए में 264 और एमए में 84 तथा 2019-20 में बीए में 309 और एमए में 102 छात्रों को प्रवेश दिया गया।
संस्कृत महाविद्यालय इंदौर में संस्कृत से ज्यादा दूसरे कोर्सों में एडमिशन
कॉलेज के पास न पर्याप्त स्थान है न क्लासेस संचालित करने के लिए कमरे। याचिका में मांग की गई है कि संस्कृत महाविद्यालय में प्रवेश के लिए गाइडलाइन बनाई जाए। इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षकों की संख्या के अनुपात में ही प्रवेश दिया जाए और इस महाविद्यालय में सिर्फ संस्कृत भाषा में ही शिक्षा दी जाए। एडवोकेट सराफ ने बताया कि कोर्ट ने इस मामले में शासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मामले में अब दिसंबर में सुनवाई होगी।