अक्सर देखा जाता है कि हम किसी भी मामले एफआईआर या कोई शिकायत दर्ज करवाते हैं ओर मामला न्यायालय में विचाराधीन हो जाता है और हम उस केस को वकील के भरोसे छोड़ देते हैं, क्या वकील को न्यायालय में आपके वाद में लगाए गए आरोप के सबूत का भार आपने सौप दिया है? इसका उत्तर है नहीं क्योंकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1 877 की धारा- 101 एवं 102 हमे बताती है कि सबूत का भार एवं साबित करने का भार वादी एवं प्रतिवादी पर ही होता हैं कि उसने जो आरोप लगाया है वह सत्य है उन असत्य एवं न्यायालय को इसकी वास्तविकता बतानी होती है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872 की धारा 101 की परिभाषा:-
वह व्यक्ति या वादी जो किसी अन्य व्यक्ति पर आरोप लगता है या वाद दायर करता है, की संबंधित व्यक्ति ने यह अपराध किया है तब वाद दायर करने वाले व्यक्ति या आरोप लगने वाले व्यक्ति पर ही सबूत का भार होता है न्यायालय में देने के लिए।
उधरणानुसार:- रामु न्यायालय से चाहता है कि वह श्यामू को उस अपराध के लिए दण्डित करने का निर्णय दे जिसके बारे में रामु कहता है वह अपराध श्यामू ने किया है।
(यहाँ रामु को यह साबित करना होगा कि श्यामू ने वह अपराध किया है।)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 102 की परिभाषा:-
सबूत को साबित करने का भार उस व्यक्ति पर होगा जिसने परिवाद दायर किया है। दोनो धाराएं समान है बस अंतर इतना है कि जिस वाद को दायर किया गया है अगर वो साबित नहीं होता है तो प्रतिवादी भी अपने आपको निर्दोष साबित करने के लिए न्यायालय को सबूत दे सकता है।
उधरणानुसार:- बलात्कार के मामले में सहमति साबित करनें का भार आरोपी पर होता है।पीड़िता को यह प्रदर्शित नहीं करना पड़ता कि उसकी ओर से कोई सहमति नहीं थी। यह सिर्फ आरोपी को ही न्यायालय को बताना पड़ता है कि उसकी सहमति थी।
1.अनपढ़ एवं अंधे व्यक्ति के मामले में सबूत का भार कौन पर होता है जानिए:-
अनपढ़ एवं अंधे व्यक्ति के मामले में न्यायालय ने प्रतिपादित किया है कि जब ऐसे व्यक्ति कहे कि हमारे हस्ताक्षर धोखाधड़ी से करवा लिए थे तब उन्होंने को वास्तविकता साबित नहीं करनी होगी। जिस व्यक्ति ने या कंपनी ने हस्ताक्षर करवाये थे उसे ही साबित करना होगा कि उन्होंने हस्ताक्षर किस प्रकार करवाए हैं।
2. चित्त-विकृति या पागल व्यक्ति के मामले में:-
ऐसे मामले में सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है, जो व्यक्ति इन लोगों से बचाब का सहारा लेता है। विधि का नियम कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थचित्त रहता है, अगर कोई व्यक्ति किसी अस्वस्थ(पागल, चित्त-विकृति) से कोई लाभ प्राप्त करता है तो उसको साबित करने का भार लाभ लेने वाले व्यक्ति को ही होगा।
3.विवाह के सबूत के मामले में:-
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 102 के अनुसार किसी भी विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र हिंदू विवाह का सबूत नहीं होता है,यदि एक पक्षकार विवाह की बात को खंडन कर दे तब। विवाह प्रमाण पत्र केवल भूमिका रहती है कि पक्षकार एक लोक प्राधिकरण के सामने पेश हुए थे और विवाह के वास्तविक नियमों को स्वीकार किया। इससे यह साबित नहीं होता कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-7 या 7A के अनुसार विवाह विधि के अनुसार सम्पन्न हुआ था।
''तलाक मामले में पति या पत्नी को ही न्यायालय में साबित करना होता है कि कौन गलत है। सबूत साबित करने का भार दोनो पर होता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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