जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक याचिका का इस निर्देश के साथ पटाक्षेप कर दिया कि दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के नियमितिकरण की मांग को गंभीरता से लिया जाए। मामला वन विभाग से संबंधित है। कोर्ट ने चीफ कंजरवेटर ऑफ फारेस्ट को निर्देश दिया है कि याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर विचार कर यथाशीघ्र उसके हित में निर्णय लिया जाए।
न्यायमूर्ति विशाल धगट की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता सागर निवासी प्रवीण हजारी की ओर से अधिवक्ता भूपेंद्र कुमार शुक्ला ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता कई साल पहले दैनिक वेतन भोगी बतौर नियुक्त हुआ था। वह नियमितिकरण की समय-सीमा पार कर चुका है। इसके बावजूद उसे नियमित नहीं किया जा रहा है। जबकि उससे अपेक्षाकृत कनिष्ठ दैनिक वेतन भोगी नियमित हो चुके हैं। इस वजह से वह आर्थिक व मानसिक कष्ट भोग रहा है। कई बार विभागीय स्तर पर आवेदन-निवेदन किया। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। इसीलिए न्यायहित में हाई कोर्ट आना पड़ा।
बहस के दौरान दलील दी गई कि दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी संपूर्ण सेवाकाल तक दैनिक वेतन भोगी नहीं रह सकता। उसे समय आने पर नियमित करने का प्रावधान है। सवाल उठता है कि जब प्रावधान है, तो उसका लाभ संबंधित को क्यों नहीं दिया जा रहा? ऐसा करने से अधिकारियों का क्या नुकसान है? इस तरह एक बेहद कम वेतन वाले कर्मचारी को परेशान करने का रवैया समझ के परे है। इससे कर्मचारी टूट गया है। उसे भी नियमित होना है, ताकि सेवानिवृत्ति पर अच्छी पेंशन बन सके। पूरा जीवन विभाग को सेवा दी और हाथ आई तो सिर्फ उपेक्षा।