पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड सहित कम से कम छह राज्यों से किसान दिल्ली के आसपास हैं, और दूरदराज कहे जानेवाले केरल के किसानो का जत्था दिल्ली कूच कर गया है । इनमें से जिन तीन राज्यों में भाजपा का शासन है, उन्हीं ३ राज्यों का प्रशासन ही किसानों को दिल्ली आने से रोकता हुआ दिखा है। प्रश्न यह है, आखिर सारे देश के किसान क्यों इतने उत्तेजित हैं? इसका एक ही कारण हैं, अनेक वर्षों से किसानों की उपेक्षा । सब जानते हैं, केंद्र सरकार कोरोना के दुष्काल बीच ही तीन कानून ले आई।सरकार का यह अनुमान गलत हो गया कि “पुराने कानून अच्छे नहीं हैं, नए कानूनों से किसानों का भला होगा।“
ये सवाल तो तब भी उठे थे जब तेजी में राज्यसभा से ये विधेयक पारित कराए गए, तब जो विरोध हुआ था, उसमें कुछ विपक्षी सांसद निलंबित भी कर दिए गए थे। तब भी सांसदों को समझाने में भी नाकामी हासिल हुई। तब किसानों के साथ समन्वय नहीं बनाया गया था, हुआ तो यहाँ तक की लंबे समय से भाजपा का सहयोगी रहा शिरोमणि अकाली दल विरोध स्वरूप सरकार व गठबंधन तोड़ कुछ स्वक छोड़ गया। सरकार की और से तब भी नाराजगी का कारण समझने की कोशिश नहीं हुईं।
तब भी और अब भी किसानों की बड़ी शिकायत है कि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा। इसके विपरीत सरकार कह रही है कि मिलेगा, लेकिन सरकार ने इसके लिए नए कानून में प्रावधान नहीं किए हैं। किसानों को लिखकर आश्वस्त नहीं किया गया है। बहुत सारे किसानों को सरकार पर यकीन है, लेकिन बहुत सारे किसान विश्वास करने को तैयार नहीं हैं। सरकार को गंभीरतापूर्वक किसानों को समझाना चाहिए था कि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य जरूर मिलेगा। वे तो यहां तक आशंकित हैं कि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर अनाज बेचना पडे़गा।
आज सरकार का तर्क है कि यह बेहतरीन कानून है, किसानों को बिचौलियों से आजादी मिलेगी, आय दोगुनी हो जाएगी, तो यह बात किसान को क्यों समझ नहीं आ रही |वे इस पर विश्वास क्यों कर रहे? क्योंकि वादे अगली पिछली सरकारों ने किए, पर ऐसा कभी हुआ नहीं है। आप जो नया कानून लागू कर रहे हैं, किसान समझते हैं कि इससे बड़ी कंपनियों को मदद मिलेगी। इनसे छोटे किसान कैसे लड़ पाएंगे? किसानों को इन बड़ी कंपनियों के सामने मजबूत करने के लिए सरकार ने क्या किया है? कौन से कानूनी प्रावधान किए हैं, ताकि किसानों की आय सुनिश्चित हो सके? क्या किसानों को विवाद की स्थिति में वकील का खर्चा भी उठाना पडे़गा? क्या हमारी सरकारों ने किसानों को इतना मजबूत कर दिया है कि वे बड़ी कंपनियों के हाथों शोषित होने से बच सकें? किसानों के बीच डर है, जिस पर सरकार को ध्यान देना चाहिएथा | तब नहीं दिया तो अब स्पष्ट कहना चाहिए |
एक अजब गणित है कृषि उत्पादों की जब कीमत बढ़ती है, तब सरकार कीमत को कम रखने के लिए निर्यात रोक देती है, आयात बढ़ा देती है। जब कृषि उत्पादों की कीमत कम रहती है, तब सरकारें किसानों को भुला देती हैं, दोनों ही स्थिति में किसानों का ही नुकसान होता है। किसानों को शिकायत है कि सरकार उपभोक्ताओं के बारे में तो सोचती है, लेकिन किसानों के बारे में नहीं।
होना तो यह था कि भारत सरकार देश में कोई भी कृषि कानून बनाते समय किसानों की स्थिति पर किसानो से बात करती |देश करीब साढ़े छह लाख गांव बचे हैं, लेकिन इन गांवों में ज्यादातर किसानों के पास बहुत कम जमीन है। किसानों के पास औसतन ढाई एकड़ जमीन है। देश में ८५ प्रतिशत से ज्यादा छोटे किसान हैं। गांव में जो लोग रहते हैं, उनमें से करीब आधे भूमिहीन हैं। आधे से ज्यादा जमीन पर सिंचाई की व्यवस्था नहीं है। इसके बावजूद भारत में जमीन बहुत ही कीमती चीज है, क्योंकि इस देश में विश्व के १८.५ प्रतिशत लोग रहते हैं, पर दुनिया की ढाई प्रतिशत से भी कम जमीन यहां है।
देश की आबादी के आधे लोग कृषि पर निर्भर हैं। करीब ६६ प्रतिशत ग्रामीणों की जीविका कृषि पर निर्भर है। इनसे भी समझा जा सकता है कि किसान क्यों परेशान हैं। वर्षों से उपेक्षा के बाद स्थिति विस्फोटक होती जा रही है। इसी विस्फोट की बानगी यह दिल्ली मार्च है, सरकार को तय करना होगा उसकी यह बात की देश कृषि प्रधान है जुमलेबाज़ी तो नहीं है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।