आज जब हम कृत्रिम मेधा पर आधारित चौथी औद्योगिक क्रांति में कुछ करने करने का सोच रहे थे। कोविद-19 ने हमारे इरादों को पीछे धकेल दिया। शनै:-शनै:यह बात उजागर हो रही है कि समाज में यह गलत समझ भी बनी हुई है कि डिजिटल उपयोगों का फैलाव किसी को ‘ज्ञानमूलक समाज’ में पहुंचा देगा। इसके बजाय संकीर्ण विशेषज्ञता को छोड़कर बहुमुखी एजेंडा की दिशा में बढ़ने के लिए एक बार फिर से नवजागरण जैसा आंदोलन शुरू करना होगा।
ज्ञानमूलक समाज के संदर्भ में यूनेस्को की शिक्षा रिपोर्ट लिखनेवाले जैक देलर की बातें विचारणीय हैं। इस रिपोर्ट में ‘वैश्विक और स्थानीय, आम और खास, परंपरा और आधुनिकता, आध्यात्मिक और भौतिक, प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता तथा अवसर की समानता के आदर्श’ के बीच प्रौद्योगिकीय, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों से उत्पन्न अनेक प्रकार के तनावों की पहचान की गयी है। शिक्षा संबंधी समग्रतापूर्ण दृष्टिकोण के लिए इसमें ‘जीवनपर्यंत शिक्षा’ की नवाचारी अवधारणा का सुझाव है।
अब तक की क्रांतियों पर एक नजर डालना जरूरी है। पहली औद्योगिक क्रांति में अनिवार्यतः कारखाना प्रणाली, दूसरी औद्योगिक क्रांति में अनिवार्यतः ‘एसेंबली लाइन आधारित उत्पादन’ के बाद अभी हम उत्तरोत्तर उन्नत होती डिजिटल प्रौद्योगिकी आधारित तीसरी क्रांति के दौर में हैं| यद्यपि गुणवत्ता और ज्ञान का फैलाव इन क्रांतियों की नींव रहा है, लेकिन चौथी औद्योगिक क्रांति के बारे में ये चीजें और भी अधिक जरूरी हैं। ज्ञान का उद्भव हमेशा इसकी सशक्त अग्रवर्ती और पृष्ठवर्ती कड़ियों पर आधारित होता है, लेकिन प्राकृतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों में संकीर्ण विशेषज्ञता शिक्षा प्रणाली के एक संकट के रूप में सामने आयी है, मजाक में ही सही, लेकिन अक्सर कहा जाता है कि बायें हाथ के विशेषज्ञ डॉक्टर दायें हाथ के बारे में नहीं जानते हैं।
लियोनार्दो द विंची हों या माइकल एंजेलो, नवजागरण के पहले के आंदोलन के प्रतिभावान लोगों में थे। ज्ञान के संज्ञानात्मक जगत का विस्तार करके सोवियत संघ ने अक्तूबर, 1957 में अपने पहले कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक को अंतरिक्ष में भेजा था। तत्काल प्रतिक्रिया करते हुए अमेरिका में नासा की स्थापना के साथ उच्च शिक्षा के लिए विद्यार्थियों को कम ब्याज पर ऋण मुहैया कर अरबों डॉलर का निवेश किया गया था। अब आप्रवासन के खिलाफ विस्फोटक बयानों के बावजूद वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूरी दुनिया के पेशेवरों के अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉरपोरेट क्षेत्र में भर्ती होने की नीति को स्वीकृति दी है। ब्रिटेन में भी टोरी सरकार ने वैज्ञानिक ज्ञान के मामले में मौजूद कमियों को दूर करने के लिए आठ विश्वविद्यालयों की स्थापना की है।
विकसित दुनिया इस बात को लेकर पूरी तरह जागरूक है कि शिक्षा की अग्रवर्ती (उच्च शिक्षा संबंधी) कड़ियां पृष्ठवर्ती (विद्यालयों की) कड़ियों के ढांचे पर टिकी हों। इस समय भारत में जरूरत है व्यापक शैक्षिक लक्ष्यों के अतिरिक्त बच्चों को देश की गौरवपूर्ण परंपरा से भी परिचित कराया जाये। इससे सुनिश्चित होगा कि नवजागरण के भारतीय स्वरूप की जड़ें इसके इतिहास में गहराई से जमी हैं।
आज उत्तर अमेरिका और यूरोप के देश तथा चीन अपने ‘हार्ड पावर’ (सैन्य शक्ति) के बल पर नहीं, ज्ञान पर आधारित अपने ‘सॉफ्ट पावर’ के आधार पर शीर्ष पर हैं। यह सॉफ्ट पावर ज्ञान के अवदान के अलावा संस्कृति, कला, संगीत, फिल्म आदि को भी समाहित करता है| बिस्मार्क सिर्फ ‘कोयला और लोहा’ के जरिये जर्मनी का वर्चस्व नहीं स्थापित कर सके थे। मार्क्स, फ्रायड, मैक्स बेवर, बीथोवन या आइंस्टीन का सॉफ्ट पावर भी उनके पास था। भारत के संदर्भ में होमी भाभा, श्रीनिवास रामानुजन, अमर्त्य सेन, रवि शंकर, सत्यजीत राय, जुबिन मेहता और अन्य लोगों का उल्लेख किया जा सकता है। यद्यपि कोविद-19 ने हमारे इरादों को पीछे धकेल दिया है, पर भारत के हौसले बुलंद है, भारत को संकीर्ण विशेषज्ञता को छोड़कर बहुमुखी एजेंडा की दिशा में बढ़ने के लिए एक बार फिर से नवजागरण जैसा आंदोलन शुरू करना होगा।