नई दिल्ली। कई लोगों को 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद या उम्र का एक पड़ाव पूरा करने के बाद लगता है कि उनका नाम सही नहीं है और वह अपने पसंद का नाम रखना चाहते हैं लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि जन्मतिथि बताने वाली 10वीं की मार्कशीट और नाम परिवर्तन से पहले बन चुके तमाम डाक्यूमेंट्स में संस्थाएं नाम परिवर्तन करने से इंकार कर देती हैं। सवाल यह है कि क्या CBSE या फिर किसी भी बोर्ड को यह अधिकार है कि वह नाम परिवर्तन से इंकार कर सके। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है।
संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) में किसी भी उम्र में नाम परिवर्तन का अधिकार
याचिकाकर्ता का नाम कबीर उर्फ रिशू जायसवाल और न्यायमूर्ति का नाम पंकज भाटिया है। टैबूट श्री भाटिया ने फैसला सुनाते हुए कहा कि भारत देश में अभिव्यक्ति की आजादी के तहत किसी व्यक्ति को उसका नाम बदलने से नहीं रोका जा सकता है। नाम बदलना अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है। संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में इसकी गारंटी दी गई है। इसी के साथ कोर्ट ने सीबीएसई को निर्देश दिया है कि याची को रिशू जायसवाल के स्थान पर कबीर जायसवाल के नाम से नया प्रमाणपत्र जारी करे। क्योंकि याची अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत अपना नाम परिवर्तित करने का हकदार है।
मामला क्या है
कबीर उर्फ रिशू जायसवाल ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिकाकर्ता का कहना है कि उसने वर्ष 2011-13 में सीबीएसई से हाईस्कूल की परीक्षा और 2015 में इंटर की परीक्षा रिशू जायसवाल पुत्र संतोष कुमार जायसवाल के नाम से उत्तीर्ण की है। इसके बाद याची ने अपना नाम रिशू की जगह कबीर जायसवाल करने के लिए गजट नोटिफिकेशन कराया और नोटिस प्रकाशित कराई तथा बोर्ड को भी प्रार्थनापत्र दिया।
गजट नोटिफिकेशन के बाद बोर्ड की मार्कशीट में नाम बदलना कानूनी बाध्यता
गजट नोटिफिकेशन के आधार पर पैन कार्ड और आधार कार्ड में उसका नाम बदला जा चुका है। लेकिन सीबीएससी ने उसके शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में नाम परिवर्तित करने का प्रार्थनापत्र यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि स्कूल के दस्तावेजों में उसका नाम नहीं बदला है। इस पर यह याचिका दाखिल की गई।