मुंबई। बलात्कार के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। 28 साल पहले हुए रेप के मामले में सेशन कोर्ट ने आरोपी को दोषी पाए जाने के बाद निर्धारित न्यूनतम 7 साल की सजा को कम करते हुए मात्र 3 साल की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने इसे गलत डिसीजन बताते हुए बलात्कारी की सजा बढ़ाकर 7 साल कर दी है।
19 साल के लड़के ने अवयस्क नौकरानी का रेप किया था
साउथ मुंबई में 28 साल पहले 19 साल के लड़के (दिसंबर 2020 में इसकी उम्र 47 साल हो गई है) ने 18 साल से कम उम्र की (अवयस्क) लड़की जो आरोपी के घर बतौर नौकरानी काम करती थी, का बलात्कार कर दिया था। पुलिस ने इन्वेस्टिगेशन में आरोप सही पाए जाने के बाद सजा निर्धारित करने के लिए धारा 376 और पास्को एक्ट के तहत मामला दर्ज करके सेशन कोर्ट में चालान पेश किया था।
ट्रायल कोर्ट ने निर्धारित न्यूनतम सजा से कम सजा सुनाई
करीब 14 साल तक यह मामला ट्रायल कोर्ट में चलता रहा। आरोपी को जमानत का लाभ दिया गया। अंत में जब अपराध प्रमाणित हो गया तो बलात्कारी को मात्र 3 साल की सजा सुनाई गई। जबकि बलात्कार के मामले में (पुराने कानून के अनुसार) न्यूनतम निर्धारित सजा 7 साल है। सेशन कोर्ट द्वारा सन 2006 में सुनाए गए इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की गई।
सजा को कम करने के लिए ट्रायल कोर्ट के पास विशेष वजह होनी चाहिए: हाई कोर्ट
मुंबई हाई कोर्ट में जस्टिस साधना जाधव और जस्टिस एनजे जामदार की बेंच ने इस मामले में जजमेंट लिखा है। कोर्ट ने कहा कि रेप एक गंभीर अपराध है और इस पर किसी के प्रति नरमी नहीं दिखाई जा सकती है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि मामले में न्यूनतम से कम सजा देने के लिए ट्रायल कोर्ट को विशेष और उचित कारण बताने होते हैं लेकिन इस केस में सेशन जज के पास कोई विशेष वजह नहीं थी। हाईकोर्ट ने कहा कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मामला काफी पुराना हो गया है। बलात्कार के 28 साल बाद अपराधी की उम्र अब 47 साल हो चुकी है।
मामला पुराना हो जाने से सजा कम नहीं होती: हाई कोर्ट
बेंच ने कहा कि 1 लाख रुपये पीड़िता को मुआवजे के रूप में दिए जाएंगे। हाई कोर्ट ने कहा, 'जैसे ही अदालत को पीड़िता द्वारा जुटाए गए सबूतों को विश्वसनीय मान लेती है, इसके बाद दोषी ठहराये जाने की प्रकिया होती है।' हाई कोर्ट बेंच ने यह भी कहा, 'केस में समय बीत जाना दोषी के प्रति नरमी दिखाने के लिए कोई उचित कारण नहीं है। कोर्ट इस तरह के गंभीर अपराधों के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं कर सकती है।'
अपराधी की जमानत निरस्त, हाईकोर्ट ने सरेंडर करने को कहा
शख्स ने खुद को दोषी ठहराये जाने के फैसले को चुनौती दी थी। वहीं राज्य सरकार ने आरोपी को तत्कालीन कानून के मुताबिक, कम से कम 7 साल के कठोर कारावास से कम सजा मिलने को चुनौती दी थी और इसे बढ़ाने की मांग की थी। आरोपी के जमानत पर बाहर होने पर हाई कोर्ट ने उसके जमानत बॉन्ड रद्द करने का फैसला सुनाया और इस महीने की शुरुआत में उसे 4 जनवरी तक सरेंडर करने को कहा था।
बलात्कार को गंभीर अपराध क्यों मानते हैं
रेपिस्ट के वकील गिरीश कुलकर्णी ने जोर दिया था कि वह निर्दोष है और पीड़िता ने मामले में देर से FIR दर्ज कराने पर कोई सही वजह भी नहीं बताई। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि उसे लगभग कैद में रखा गया था और किसी से भी संपर्क करने नहीं दिया गया था। हाई कोर्ट ने कहा कि बलात्कार एक महिला के सर्वोच्च सम्मान और गरिमा पर गंभीर आघात के बराबर है। यह मानवाधिकार का उल्लंघन है। यह न सिर्फ एक शारीरिक चोट बल्कि उसके नारीत्व पर भी चोट है।