यह हिमाचल प्रदेश में कुछ क्षेत्रों में नहर सिंचाई की एक स्थानीय प्रणाली थी जिसे कुल्ह कहा जाता था। यह लगभग 400 साल पुरानी प्रणाली है, इस प्रणाली में झरनों से बहने वाले पानी को मानव निर्मित छोटी-छोटी नालियों से पहाड़ी पर स्थित निचले गांव तक ले जाया जाता था।
कुल्ह से प्राप्त जल का प्रबंधन क्षेत्र के सभी गांवों की सहमति से किया जाता था। आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि कृषि के मौसम में जल सर्वप्रथम दूरस्थ गांव यानी पंक्ति के अंतिम किसान को दिया जाता था, फिर उत्तरोत्तर ऊंचाई पर स्थित गांव उस जल का उपयोग करते थे।
उनकी देखरेख एवं प्रबंधन के लिए दो या तीन लोग रखे जाते थे जिन्हें गांव वाले वेतन भी देते थे। सिंचाई के अतिरिक्त इन कुल्ह से जल का भूमि में अंतः स्रावन भी होता रहता था जो विभिन्न स्थानों पर झरने को भी जल प्रदान करता रहता था।
प्रक्रिया के दौरान छोटे मोटे विवाद भी हो जाते थे। इसी का बहाना बनाकर सरकार ने इस प्राचीन सिंचाई परियोजना का अधिग्रहण कर लिया और अब कोई विवाद नहीं है क्योंकि इनमें से अधिकतर निष्क्रिय हो गए हैं तथा जल के वितरण की आपस की भागीदारी की पहले जैसी व्यवस्था भी समाप्त हो गई।