हमारी दण्ड संहिता में अपराधियों के साथ साथ ऐसे लोकसेवक को भी दण्ड का प्रावधान किया गया है जो अपने कार्य में लापरवाही करते हैं। क्योंकि भारत देश एक लोकतांत्रिक देश है और सभी को समान अधिकार एवं लोगों के हितों को ध्यान में रखकर लोककल्याणकरी कानून व्यवस्था बनाना राज्यों की प्राथमिकता है। अगर कोई लोकसेवक ऐसे कैदी को जानबूझकर अपनी अभिरक्षा से भगाएगा जिसने सरकार की मानहानि की है या सरकार के विरुद्ध युद्ध का प्रयत्न किया है या युध्द किया है। तब उस लोकसेवक को कितनी सजा होगी और कितना गंभीर अपराध माना जाएगा जानिए।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 128 की परिभाषा:-
अगर कोई लोकसेवक अपनी अभिरक्षा या जेल से जानबूझकर ऐसे कैदी को निकलेगा या भगा देगा:-
1. जिस व्यक्ति ने भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करा हो या करने का प्रयत्न किया हो या राज्यों के विरुद्ध युद्ध करने वाले अपराधियों का साथ दिया हो।
2. अगर किसी व्यक्ति को राजद्रोह का अपराध किया हो या सरकार की मानहानि की भगा देने पर लोकसेवक को धारा 128 के अंतर्गत दोषी मना जाएगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 128 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है, यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई सत्र न्यायालय द्वारा की जाती है। सजा- आजीवन कारावास या दस वर्ष की कारावास और जुर्माना से दण्डित किया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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