किसी सामान्य अपराधी को आश्रय देना या छुपा लेना आईपीसी की धारा 212 के अंतर्गत अपराध होता है। एवं अगर कोई अपराधी पुलिस अभिरक्षा से निकल भागता है तब दण्ड संहिता की धारा- 216 के अंतर्गत अपराध होता है। लेकिन कोई व्यक्ति ने राजद्रोह का अपराध किया हो या सरकार के विरुद्ध युद्ध किया हो या करने का प्रयत्न भी किया हो तब ऐसे अपराधी को आश्रय देने पर एक नई धारा के अंतर्गत एफआईआर दर्ज होगी। यहाँ पर कोई भी व्यक्ति से आशय हैं:- सभी लोकसेवक या सभी सामान्य व्यक्ति से है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 130 की परिभाषा:-
अगर कोई भी व्यक्ति जानबूझकर निम्न अपराधी या आरोपी को आश्रय देगा या संरक्षण करेगा:-
1.जिस व्यक्ति पर राजद्रोह का मामला दर्ज है या पुलिस अभिरक्षा से भगा हुआ हो।
2. जिस व्यक्ति पर भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करनें का मामला दर्ज है या पुलिस अभिरक्षा से भगा हुआ हो।
3. उपर्युक्त दोनो प्रकार से अपराधियों को रास्ते में से पुलिस अभिरक्षा या किसी विधिपूर्वक अभिरक्षा से जबर्दस्ती छुड़ाया हो। या पेरोल पर आए उपर्युक्त अपराधी को भारत की सीमा से बाहर भगाया गया हो।
तब ऐसा करने वाला व्यक्ति धारा 130 के अंतर्गत दोषी होगा।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 130 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते हैं। यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई का अधिकार सत्र न्यायालय को होता है। सजा- इस धारा के अपराध के लिए आजीवन कारावास या दस वर्ष की कारावास एवं जुर्माने से दाण्डित किया जा सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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