आज हम जिस धारा के बारे में जानकारी दे रहे है वह कल की धारा 437 के समानरूपी है, अन्तर सिर्फ इतना है कि धारा 437 जलयानों को कम क्षतिग्रस्त या सामान्य तोड़फोड़ पर अपराध माना गया था, लेकिन आज की धारा 438 उस स्थिति में लागू होती है, जब कोई व्यक्ति जलयान अर्थात नाव, जहाज, किस्ती आदि में कोई विस्फोटक पदार्थ रखता है या अग्नि द्वारा रिष्टि (नष्ट) करता है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 438 की परिभाषा:-
अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी जलयानों में विस्फोटक पदार्थ रखेगा जिससे जलयान को नष्ट होने की संभावना हो या जलयान को अग्नि द्वारा नष्ट, क्षतिग्रस्त करेगा। या विस्फोट द्वारा क्षतिग्रस्त करेगा तब ऐसा करनें वाला व्यक्ति धारा 438 के अन्तर्गत दोषी होगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 438 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है, यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई का क्षेत्राधिकार सत्र न्यायालय होता है। सजा- इस अपराध के लिए आजीवन कारावास से 10 वर्ष तक हो सकती है एवं साथ में जुर्माने से भी दाण्डित किया जाएगा।
उधरणानुसार:- समुद्र में चलने वाले जहाजो के अंदर कोई व्यक्ति उन जहाजो में विस्फोटक पदार्थ रख दे। या उन्होंने कम उपयोगी बनाने के लिए जहाजो में आग लगा दे, तब ऐसा करने वाला व्यक्ति धारा 438 के अंतर्गत दोषी होगा। यही बात नदी में चलने वाली नावों पर भी लागू होती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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