बैतूल। मध्यप्रदेश के बैतूल जिले का महत्व इतिहास की दृष्टि से बढ़ गया है। यह कोई 500 या 5000 साल पुराना शहर नहीं है बल्कि सवा लाख साल पहले भी यहां इंसानी बस्ती थी। यह बात अब जाकर प्रमाणित हुई जब बैतूल जिले में प्रीहिस्टोरिक ऐज की आकृतियां मिली। बताया जा रहा है कि यह आकृतियां 30,000 से सवा लाख साल पुरानी है। यह आकृतियां मानव सभ्यता की शुरुआती दिनों के चिन्ह है।
बैतूल के जंगलों में आदिमानव रहता था, यहीं मनुष्य बंदर से इंसान बना
बैतूल जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर पहाड़ों के बीच दूर चट्टानों पर उकेरी गई गोलाकार आकृतियों के साथ लाखों साल पुराने कप मार्क्स के निशान मिले हैं। जो हमारी लाखों साल पुरानी सभ्यता और विरासत की झलक पेश कर रहे हैं। बैतूल जिले में यह निशान मिलना इस बात का प्रमाण है कि इस क्षेत्र में भी कभी आदिमानव का बसेरा रहा होगा। प्राचीन इतिहास की विशेषज्ञ डॉ विजेता चौबे के अनुसार इससे पहले इस तरह के चिन्ह यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में ही मिले हैं। उन्होंने इन चिन्हों को नवपाषाण काल के समय का बताया है।
मानव सभ्यता का पहला कैलेंडर भी मिला है
दरअसल, पत्थरों पर खुदाई कर बनाए गए इन चिन्हों की तरफ कभी किसी ने ध्यान ही नहीं दिया था। जानकार मानते हैं कि यह आकृतियां मातृशक्ति को दर्शाने वाली आकृतियां है। यही नहीं यह रॉक पेंटिंग से भी पुरानी सभ्यता की निशानी है। गोलाकार, संख्यात्मक और दो समानांतर पंक्तियों में उकरे गए यह चिन्ह ऑर्गेनेशियन कल्चर के दौर की सभ्यता से मिलते हैं। इससे लगता है कि यह चंद्रमा और तारों की गति या फिर साल और महीनों की गणना करने का कोई तरीका रहा होगा। स्थानीय ग्रामीण इन आकृतियों को हाथीखुर कहते हैं। इससे ज्यादा वे इन चिन्हों के बारे में ज्यादा नहीं जानते।
बैतूल में प्रीहिस्टोरिक ऐज की आकृतियों को महालक्ष्मी के हाथी के पैर के निशान मानकर पूजा जाता है
स्थानीय बुजुर्ग ने बताया कि वे इसे हाथीखुर मानते हैं यानि एरावत हाथी के पांव जिस पर सवार होकर महालक्ष्मी आई थी। जिसके चलते वे इन चिन्हों की पूजा भी करते है। बुजुर्गों ने बताया है कि यह काफी समय से यहां मौजूद है उन्हें इन चिन्हों के बारे में ज्यादा कोई जानकारी नहीं है। खास बात यह है कि एक छोटे नाले के किनारे 40 बाई 25 फुट के पत्थर पर यह कलाकृतियां बनी हुई है। जिनमे कई चिन्ह गोल है तो कुछ यौनाकार चिन्ह हैं। कही-कही एक पंक्तियों में छोटे-छोटे 12 और 11 गड्ढे बने हुए है। कई जगहों पर गहरे कप आकार के गड्ढे भी बने हुए है। जिन्हे कप मार्क्स कहा जाता है। इस तरह के चिन्ह कभी ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में भी मिले थे