यदि कोई महिला शासकीय सेवा में ज्वाइन करने से पहले मां बन जाती है तो क्या उसे मातृत्व अवकाश का अधिकार है। यदि आप किसी प्रशासनिक अधिकारी से पूछेंगे तो वह ऐसे अवकाश के आवेदन को निरस्त कर देगा। राजस्थान में भी कुछ ऐसा ही हुआ लेकिन हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारी की समझ पर सवाल उठाते हुए उसके आदेश को अपास्त कर दिया और ना केवल महिला कर्मचारी के मातृत्व अवकाश को स्वीकृत किया बल्कि महिला कर्मचारी की परिवीक्षा अवधि भी समाप्त कर दी। इस मामले में हाईकोर्ट के न्यायाधीश दिनेश मेहता ने फैसला सुनाया।
नागौर के सिंधपुरा गांव निवासी महिला नीरज ने ड्यूटी जाॅइन करने से कुछ दिन पहले 15 मई 2016 को एक बच्चे को जन्म दिया। इसके बाद 4 जून 2016 को उनकी पीटीआई ग्रेड थर्ड के पद पर नियुक्ति हुई। हालांकि वह ड्यूटी जाॅइन करने के लिए फिट नहीं थी, लेकिन नॉन जॉइनिंग से कुछ नुकसान होने के चलते दो दिन बाद ही 6 जून को उन्हाेंने ड्यूटी जाॅइन कर दी। बच्चे की देखभाल के इरादे से उन्होंने 21 जून 2016 को मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन कर दिया और 26 जून से 10 नवंबर 2016 तक कुल 142 दिनों तक वह ऑफिस नहीं आई। इस पर विभाग ने 13 अगस्त 2018 को बिना वेतन के उनकी 90 दिन की छुट्टी मंजूर की।
यही नहीं 17 जुलाई 2019 को बचे हुए 52 दिन का अवकाश एक्स्ट्रा ऑर्डिनेरी अवकाश के रूप बिना वेतन के स्वीकृत किया। परिवीक्षा अवधि को 112 दिन बढ़ाते हुए 26 सितंबर 2019 को उसकी नौकरी कन्फर्म की गई यानी उसे स्थाई किया गया। इसके बाद महिला ने कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि उसका परिवीक्षा काल में बढ़ाेतरी गलत की गई है। उसे मातृत्व अवकाश मिलना चाहिए।
कोर्ट ने दोनों पक्ष सुनने के बाद कहा- अब यह समय है कि सरकार को केस की मैरिट पर फोकस करना चाहिए, नागरिक के फायदे पर आपत्ति व रोक लगाने की बजाय खुद अनुमति देनी चाहिए। इस तथ्य की परवाह किए बिना की महिला याचिकाकर्ता ने बच्चे काे जन्म जॉइनिंग से पहले दिया है वह राजस्थान सर्विस रूल्स के नियम 103 के तहत महिला याचिकाकर्ता मातृत्व अवकाश लेने की हकदार है।
कोर्ट ने 13 अगस्त 2018, 17 जुलाई 2019 व 21 नवंबर 2019 को शिक्षा विभाग की ओर से जारी किए गए आदेश को अपास्त कर दिया। याचिकाकर्ता को स्वीकृत किया गया 142 दिन को अवकाश मातृत्व अवकाश माना जाएगा तथा वह इस अवधि भुगतान या वेतन भी लेने की हकदार होगी।