नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कर्मचारी की ग्रेजुएटी के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी हालत में किसी भी व्यक्ति या संस्था द्वारा कर्मचारी की ग्रेच्युटी को रोका नहीं जा सकता। कर्मचारी पर देनदारी साबित होने पर या फिर कोर्ट द्वारा डिक्री जारी हो जाने पर भी ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं रोका जा सकता।
बैंक के गारंटर बने कर्मचारी की ग्रेजुएटी रोक ली थी
बैंक कर्मचारी भूदेव त्रिवेदी की याचिका पर यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर व न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की पीठ ने दिया। कोर्ट ने नियोक्ता बैंक को याची की ग्रेच्युटी का भुगतान 15 दिन के भीतर ब्याज सहित करने का निर्देश दिया है। याची जयगोपाल इंटर प्राइजेज का गारंटर था। कंपनी का खाता एनपीए हो गया तो बैंक ने याची के रिटायर होने पर उसकी ग्रेच्युटी का भुगतान इस आधार पर रोक लिया कि गारंटर की भी जिम्मेदारी बनती है। इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। एकलपीठ ने याचिका खारिज कर दी। इस आदेश को विशेष अपील में चुनौती दी गई थी।
किसी भी कानून में ग्रेजुएटी रोकने का कोई प्रावधान नहीं है
इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि याची की सेवा नियमावली में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके आधार पर ग्रेच्युटी रोकी जा सके। पेंमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट में भी ग्रेच्युटी रोकने का कोई प्रावधान नहीं है। इसके अलावा सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 60 के सब सेक्शन (1) क्लाज (जी) के तहत ग्रेच्युटी को अटैच नहीं किया जा सकता है। इस धारा के तहत ग्रेच्युटी को संबद्धता से इम्युनिटी प्राप्त है।
कोर्ट की तरफ से डिक्री पारित होने पर भी ग्रेच्युटी नहीं रोक सकते
यहां तक कि यदि किसी कोर्ट की ओर से पारित डिक्री अथवा किसी अन्य प्रकार से याची की देनदारी साबित भी होती है तो उसकी पूर्ति ग्रेच्युटी की रकम से नहीं की जा सकती है। भुगतान के लिए ग्रेच्युटी को संबद्ध नहीं किया जा सकता है।