आपने अक्सर देखा होगा, कुछ नेताओं या फिर आर्ट एंड कल्चर से जुड़े हुए युवाओं के हाथ में एक कलरफुल धागा बंधा होता है। जब आप किसी पूजन या अनुष्ठान में बैठते हैं तो पंडित जी द्वारा आपके हाथ में एक विशेष प्रकार का धागा जिसे कलावा या मौली कहते हैं, बांधते हैं। सवाल यह है कि क्या कलरफुल धागा और कलावा में कोई अंतर है। पूजन या अनुष्ठान में कलावा क्यों बांधा जाता है। आइए इस मजेदार सवाल का जवाब तलाशते हैं:-
दाएं हाथ में उप मणिबंध बांधने की परंपरा कब से शुरू हुई
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार कलावा या मौली' का अर्थ है 'सबसे ऊपर' यानि कि मौली का तात्पर्य सिर से है। मौली को कलाई में बांधे जाने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं तथा इसका वैदिक नाम उप मणिबंध है। भगवान शिव के सिर पर चन्द्र विराजमान हैं, इसीलिए इसे चंद्रमौली भी कहा जाता है। कहा जाता है कि जब इंद्र जी वृत्रासुर से युद्ध करने जा रहे थे तब इंद्राणी ने इंद्र जी की दाहिनी भुजा के कलाई पर रक्षा-कवच के रूप में कलावा बांधा था और इंद्र इस युद्ध में विजयी हुए। तब से रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा आज तक चली आ रही है।
कलावा बांधने का वैज्ञानिक कारण
दरअसल मौली का धागा कच्चे सूत से तैयार किया जाता है और, यह कई रंगों जैसे, लाल, काला, पीला अथवा केसरिया रंगों में होती है। ज्यादातर लोग सही कलाई में बांधते हैं। शास्त्रानुसार कलावा बांधने से मनुष्य को भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती एवं सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। मनुष्य बुरी दृष्टि से बचा रहता है औरस्वास्थ्य में बरकत होती है।
कलावा बांधने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इससे वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक और लकवा जैसे गंभीर रोगों से कलावा बचाने में सहायक है। आदिकाल वैद्य इसीलिए हाथ, कमर, गले व पैर के अंगूठे में इसे बंधवाते थे।
शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है (आपने भी देखा होगा कि डॉक्टर रक्तचाप एवं ह्रदय गति मापने के लिए कलाई के नस का उपयोग प्राथमिकता से करते हैं ) इसीलिए वैज्ञानिकता के लिहाज से हाथ में बंधा हुआ मौली धागा एक एक्यूप्रेशर की तरह काम करते हुए मनुष्य को रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाता है।