जब सरकार द्वारा देश के नागरिकों की मांग पूरी नहीं होती तो देश या राज्य के नागरिक धरना, प्रदर्शन या हड़ताल करते हैं।कुछ नेता, विधायक, मंत्री चुनाव आते ही बड़ी बड़ी घोषणा करते हैं, ओर चुनाव खत्म होते ही सब भूल जाते है। तब अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए देश की जनता धरना, प्रदर्शन या हड़ताल करती है। क्या तब ऐसा धरना, प्रदर्शन या हड़ताल करना भारतीय नागरिकों की स्वतंत्रता का अधिकार है जानिए।
भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुसार:-
ऐसा धरना या प्रदर्शन जो हिंसात्मक और दंगा नहीं है। वह अनुच्छेद 19(1) क के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण होगा।
लेकिन हड़ताल करनें का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (क) के अंतर्गत कोई मूल अधिकार नही है। अर्थात कहा जा सकता है कि किसी भी व्यक्ति को हड़ताल करने से रोका जा सकता है। अगर कोई प्रदर्शन जब हड़ताल का रूप धारण कर लेता है तब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खत्म हो जाती है।
"हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि हड़ताल कभी असंवैधानिक नहीं हो सकती। विरोध करने का अधिकार एक बहुमूल्य संवैधानिक अधिकार है। लेकिन ऐसा बंद या हड़ताल करना जिससे जन-जीवन पर कोई असर न हों। और हड़ताल हिंसात्मक न हो। तब वह संवैधानिक हो सकती है।
(वैसे संविधान की परिभाषा में ऐसी हड़ताल को असंवैधानिक मना गया है)
इसी प्रकार कानूनी जानकार के अनुसार:-
भूख हड़ताल का अधिकार भी पूर्ण अधिकार नहीं है। सरकार की कानून लागू करवाने वाली एजेंसी यानी पुलिस इस पर रीजनेबल रिस्ट्रिक्शन (तर्कसंगत रोक) लगा सकती है। कानूनी जानकार के अनुसार, राइट टु लाइफ मूल अधिकार है, लेकिन राइट टू डाई जैसा प्रावधान हमारे यहां नहीं है। इतना ही नहीं इच्छा मृत्यु का भी प्रावधान नहीं है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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