जबलपुर। सन 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के समय तय किया गया था कि दस्तावेजों में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल रहेगी परंतु इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर शहरों में कुछ विभागों के मुख्यालय स्थापित किए जाएंगे ताकि उनका महत्व बना रहे। प्रदेश की नीति के कारण ही केंद्र के विभागों का विभाजन भी हुआ था परंतु अब सरकारी स्तर पर जबलपुर का महत्व कम किया जा रहा है। भारत संचार निगम लिमिटेड भी अपने दोनों मुख्यालय शिफ्ट कर रहा है।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने BSNL मामले में दखल देने से इनकार किया
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के दो मुख्यालयों की जबलपुर से बाहर शिफ्टिंग के खिलाफ दायर जनहित याचिका को हस्तक्षेप अयोग्य करार दिया। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय यादव व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने साफ किया कि यह मामला प्रशासनिक प्रक्रिया से संबंधित है। लिहाजा, हाई कोर्ट दखल देने की स्थिति में नहीं है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के रुख को समझते हुए जनहित याचिकाकर्ता नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच, जबलपुर के प्रांताध्यक्ष डॉ.पीजी नाजपांडे व डॉ.एमए खान के अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने जनहित याचिका वापस लिए जाने का निवेदन किया। कोर्ट ने यह निवेदन मंजूर करते हुए जनहित याचिका का पटाक्षेप कर दिया।
धीरे-धीरे जबलपुर की खास बातें खत्म हो रही है
जनहित याचिका के जरिये जबलपुर का हक मारे जाने को चुनौती दी गई थी। अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने बहस के दौरान तर्क दिया था कि इससे पूर्व भी समय-समय पर जबलपुर की विशेषताओं को छीना जा चुका है। अब इसी कड़ी में BSNL के दो मुख्यालय जबलपुर से छीनकर देश के दो बड़े शहरों के दामन में डाल दिए गए हैं। इससे न केवल जबलपुर बल्कि समूचे मध्य प्रदेश की गरिमा को अपूर्णीय क्षति पहुंची है। लिहाजा, केंद्र शासन के संबंधित मंत्रालय व विभाग को इस संबंध में पुनर्विचार करना चाहिए।
सांसद राकेश सिंह और विवेक तंखा भी कुछ नहीं कर पाए
जनहित याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट आने से पूर्व जबलपुर के सांसद राकेश सिंह और राज्यसभा सदस्य विवेक कृष्ण तन्खा को पत्र सौंपे थे। जिसके बाद दोनों ने केंद्र सरकार व संबंधित विभाग व मंत्रालय तक आवाज भी पहुंचाई। अंतत: जबलपुर का हक छीन ही लिया गया। यहां तक कि नीति आयोग से हस्तक्षेप की मांग भी काम नहीं आई।