जबलपुर। मध्य प्रदेश के सबसे पुराने शहर जबलपुर में राजनीति का जलवा इस बार नगर निगम चुनाव में दिखाई देगा। इस शहर पर 70 साल तक कांग्रेस ने राज किया है लेकिन दिग्विजय सिंह शासनकाल में पूरे मध्यप्रदेश के साथ हैं जबलपुर में भी कांग्रेस का पतन हुआ। 16 साल से भारतीय जनता पार्टी की सत्ता संचालित है। देखना यह है कि क्या इस बार कांग्रेस पार्टी महापौर की कुर्सी भाजपा से वापस हासिल कर पाएगी।
नेताओं के जाने से कांग्रेस को फर्क पड़ता है या नहीं, यह रहा जवाब
जबलपुर नगर निगम के चुनाव की शुरुआत से लेकर अब तक 96 सालों में 70 साल कांग्रेस पार्टी ने राज किया। जबलपुर नगर निगम की कहानी कांग्रेस के उन नेताओं के लिए बड़ा प्रमाण है जो अक्सर कहते हैं कि किसी भी नेता के आने जाने से कांग्रेस को फर्क नहीं पड़ता। जबलपुर में नेताओं के जाने से कांग्रेस को फर्क पड़ा। 70 साल की सत्ता हाथ से निकल गई पुलिस पिछले 16 साल से कांग्रेस पार्टी सही मायनों में दूसरे नंबर मुकाबले में भी नहीं है।
जबलपुर में भाजपा और कांग्रेस के बीच कितना अंतर है
पिछले महापौर चुनाव में भाजपा की डॉ. स्वाति सदानंद गोडबोले ने रिकॉर्ड 85000 मतों से जीत दर्ज की थी। कांग्रेस की गीता शरत तिवारी को मिले 212942 घोड़ों की तुलना में भाजपा प्रत्याशी को 298433 वोट मिले थे। वहीं, सदन में भी भाजपा को बहुमत मिला था। 79 वार्डों में भाजपा के 42 पार्षद चुने गए थे। कांग्रेस के मात्र 29, निर्दलीय 6 और शिवसेना के दो पार्षद चुने गए थे।
भाजपा की ओर से महापौर पद के दावेदार
प्रभात साहू पूर्व महापौर रह चुके हैं। वीडी शर्मा से लेकर सांसद के भी करीबी हैं।
अभिलाष पांडे, और कमलेश अग्रवाल युवा चेहरे के रूप में मजबूत दावेदार होंगे।
गोडबोले दंपति जबलपुर नगर निगम के महापौर पद के लिए ही राजनीति करते हैं। सदानंद गोडबोले और उनकी पत्नी स्वाति गोडबोले महापौर रह चुके हैं। कहते हैं नागपुर से इनके काफी अच्छे संबंध है।
डाॅ. जितेंद्र जामदार, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कृपा पात्र हैं। संघ में मजबूत पकड़ रखते हैं। कई चुनावों में दावेदार रह चुके हैं।
श्रीराम शुक्ला लगातार पार्षद चुने जा रहे हैं। एमआईसी सदस्य के तौर पर जल का प्रभार संभाल रहे हैं। वर्तमान में नगर और नगर निगम का अच्छा अनुभव है।
डॉ. विनोद मिश्रा जेडीए के अध्यक्ष थे।
जीएस ठाकुर भाजपा के वर्तमान नगर अध्यक्ष हैं।
कांग्रेस की ओर से महापौर पद के दावेदार
गौरव भनोत युवा चेहरा और कमलनाथ के मित्र तरुण भनोत के भाई हैं।
जगत बहादुर सिंह अन्नू को विधानसभा चुनाव में आश्वासन दिया गया था।
सौरभ नाटी शर्मा जमीनी नेता हैं और विवेक तन्खा के करीबी हैं।
राजेश साेनकर अभी नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष थे। कमलनाथ की कृपा पात्र हैं।
संजय राठौर लगातार पार्षद रहे हैं। शहर में कांग्रेस पार्टी का युवा चेहरा है।
आलोक मिश्रा विधानसभा चुनाव में केंट विधानसभा से प्रत्याशी थे।
बाबू विश्वमोहन पिता की विरासत को आगे बढ़ा सकते हैं।
1999: कांग्रेस में गुटबाजी पॉवर में आई और पार्टी सत्ता से बेदखल हो गई
1999 में कांग्रेस के आखिरी महापौर विश्वनाथ दुबे चुने गए थे। उनके द्वारा बनवाया गया मॉडल रोड आज भी उदाहरण बना हुआ है। 60 वार्डों के उस चुनाव में 38 पार्षद भाजपा के चुने गए थे, जबकि कांग्रेस के 25 पार्षद थे। 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार का ठीकरा श्री विश्वनाथ दुबे के सिर पर फोड़ा गया। आहत होकर श्री दुबे ने नैतिकता के आधार पर महापौर पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद जबलपुर नगर निगम में महापौर की कुर्सी पर कभी कोई कांग्रेस नेता बैठ नहीं पाया।