जबलपुर। पिछले 3 दिनों में मौसम में तेजी से परिवर्तन हुआ है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थिति में पाला पड़ सकता है। सर्दी के सीजन में 'पाला' एक ऐसा शब्द है जो किसानों का ब्लड प्रेशर बढ़ा देता है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समझदारी से काम लिया जाए तो अपने खेत और बगीचों को पाला का शिकार होने से बचाया जा सकता है।
कैसे पता करें कि पाला पड़ने वाला है
जनेकृविवि के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ.शेखर सिंह बघेल बताते हैं कि आसमान साफ हो, हवा न चले और तापमान कम हो जाए तब पाला पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। दिन के समय सूर्य की गर्मी से पृथ्वी गर्म हो जाती है और पृथ्वी से यह गर्मी विकिरण द्वारा वातावरण में स्थानांतरित हो जाती है। इसलिए रात्रि में जमीन का तापमान गिर जाता है, क्योंकि पृथ्वी को गर्मी नहीं मिलती और इससे मौजूद गर्मी विकिरण द्वारा नष्ट हो जाती है। तापमान कई बार 0 डिग्री सेल्सियस या इससे भी कम हो जाता है। ऐसी अवस्था में ओस की बूंदें जम जाती है। इस अवस्था में पाला पड़ने लगता है।
काला पाला और सफेद पाला में क्या अंतर है
दरअसल पाला मुुख्यतौर पर दो प्रकार के होते हैं। एक होता है काला पाला और दूसरा होता है सफेद पाला। इसमें काला पाला उस अवस्था को कहते हैं जब जमीन के पास हवा का तापमान बिना पानी के जमे शून्य डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है। वायुमंडल में नमी इतनी कम हो जाती है कि ओस का बनना रुक जाता है, जो पानी को जमने से रोकता है।
वहीं सफेद पाला में वायु मंडल में तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है। इसके साथ ही वायुमंडल में नमी ज्यादा होने की वजह से ओस बर्फ के रूप में बदल जाती है। पाले की यह अवस्था सबसे ज्यादा हानि पहुंचाती है। यदि पाला अधिक देर तक रहे, तो पौधे मर भी सकते हैं।
पाला पड़ने से पौधों को नुकसान क्यों होता है
पाले से प्रभावित पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित पानी सर्वप्रथम अंतरकोशिकीय स्थान पर एकत्रित हो जाता है। इस तरह कोशिकाओं में निर्जलीकरण की अवस्था बन जाती है। दूसरी ओर अंतरकोशिकीय स्थान में एकत्रा जल जमकर ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है, जिससे इसके आयतन बढऩे से आसपास की कोशिकाओं पर दबाव पड़ता है। यह दबाव अधिक होने पर कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इस प्रकार कोमल टहनियां पाले से नष्ट हो जाती हैं।
पाले से पौधों को बचाने के लिए क्या करें
जब वायुमंडल का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से कम तथा शून्य डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है तो पाला पड़ता है। इसलिए पाले से बचने के लिए किसी भी तरह से वायुमंडल के तापमान को शून्य डिग्री सेल्सियस से ऊपर बनाए रखना जरूरी है। ऐसा करने के कुछ उपाय सुझाए गए हैं, जिन्हें अपनाकर ज्यादा लाभ उठा सकते हैं।
- नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की चादर से ढकने की सलाह दी जाती है।
- ऐसा करने से प्लास्टिक के अंदर का तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है।
- इससे सतह का तापमान जमाव बिंदु तक नहीं पहुंच पाता और पौधे पाले से बच जाते हैं, लेकिन यह महंगी तकनीक है।
- पुआल का इस्तेमाल पौधों को ढकने के लिए किया जा सकता है।
- पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पौधों का दक्षिण-पूर्वी भाग खुला रहे, ताकि पौधों को सुबह व दोपहर को धूप मिलती रहे।
- पुआल का प्रयोग दिसंबर से फरवरी तक करें। मार्च का महीना आते ही इसे हटा दें।
- नर्सरी पर छप्पर डालकर भी पौधों को खेत में रोपित करने पर पौधों के थावलों के चारों ओर कड़बी या मूंज की टाटी बांधकर भी पौधों को पाले से बचाया जा सकता है।
खेत में फसल को पाली से बचाने के लिए क्या करें
खेत की मेड़ पर लगाएं पेड़ व झाडिय़ों की बाड़ पाले से बचाव के लिए खेत के चारों दिशाओं में मेड़ पर पेड़ व झाड़ियों की बाड़ लगा दी जाती है। इससे शीतलहर द्वारा होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। अगर खेत के चारों ओर मेड़ पर पेड़ों की कतार लगाना संभव न हो तो कम से कम उत्तर-पश्चिम दिशा में जरुर पेड़ की कतार लगानी चाहिए। जो इसी दिशा में आने वाली शीतलहर को रोकने का काम करेगी। पेड़ों की कतार की ऊंचाई जितनी अधिक होगी शीतलहर से सुरक्षा उसी के अनुपात में बढ़ती जाती है और यह सुरक्षा चार गुना दूरी तक होती है जिधर से शीतलहर आ रही है। पेड़ की ऊंचाई के २५-३० गुना दूरी तक जिधर शीतलहर की हवा जा रही है, फसल सुरक्षित रहती है।
आम एवं पपीता जैसे पेड़ों को पाले से बचाने के लिए क्या करें
पपीता व आम के छोटे पेड़ को प्लास्टिक से बनी क्लोच से बचाया जा सकता है। इस तरह का प्रयोग हमारे देश में प्रचलित नहीं है परन्तु हम खुद ही प्लास्टिक की क्लोच बनाकर इसका प्रयोग पौधों को पाले से बचाने के लिए कर सकते हैं। क्लोच से पौधों को ढकने पर अंदर का तापमान तो बढ़ता ही है साथ में पौधे की बढ़वार में भी मदद करता है। इस प्रकार हम फसल, नर्सरी तथा छोटे फल वृक्षों को पाले से होने वाले नुकसान से बहुत ही आसान एवं कम खर्चीले तरीकों द्वारा बचा सकते हैं। विदेशों में महंगे पौधों को बचाने के लिए हीटर का प्रयोग भी किया जाता है, लेकिन हमारे देश में अभी यह संभव नहीं है।