जबलपुर। इससे अजीब बात क्या हो सकती है कि मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री किसान है फिर भी खेती से जुड़े मामले न्याय पाने के लिए हाईकोर्ट की चौखट पर हैं। मामला मटर का है। मध्य प्रदेश के सरकारी रिकॉर्ड में मटर ना तो अनाज है ना ही दाल। यही कारण है कि मटर पर मुआवजा नहीं दिया जाता। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में मटर को उसका घर दिलाने के लिए जनहित याचिका लगाई गई है।
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच, जबलपुर के प्रांताध्यक्ष डॉ.पीजी नाजपांडे, रजत भार्गव, अनिल पचौरी व डॉ.एमए खान जनहित याचिकाकर्ता हैं। उन्होंने अवगत कराया कि जबलपुर का नाम देश में रोशन करने वाले मटर की जमकर अनदेखी हो रही है। आलम यह है कि मटर की फसल अनाज, दलहन, तिलहन, सब्जी आदि किसी भी श्रेणी में नहीं रखी गई है। इसलिए राजस्व रिकॉर्ड में धान, मक्का, सोयाबीन, मूंग, उड़द, गेहूं, चना, दलहन तो दर्ज हैं, लेकिन मटर नदारद है।
खेती 90 हजार हेक्टेयर, दर्ज 15 हेक्टेयर
जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि जबलपुर के 90 हेक्टेयर में मटर बोया जाता है। लेकिन कृषि विभाग के रिकॉर्ड में महज 15 हेक्टेयर बोनी क्षेत्र दर्ज है। जबकि शहपुरा, सहजपुर, पाटन, बरगी, मझौली, पनागर व सिहोरा में मटर की खेती अच्छी होती है।
500 करोड़ से अधिक का सालाना कारोबार
जनहित याचिका में कहा गया है कि प्रतिवर्ष जबलपुर में 500 करोड़ से अधिक का हरे मटर का कारोबार होता है। भारत में सर्वाधिक मटर उत्पादन व निर्यात में जबलपुर का नाम दर्ज है। इसके बावजूद जबलपुर में मटर फुड प्रोसेसिंग, फुड प्रोडक्ट्स का धंधा ठीक से नहीं पनपा। इसलिए किसान अपनी फसल को भाग्य भरोसे छोड़ने विवश होते हैं। इससे अपूर्णीय क्षति हो रही है।