भोपाल। मध्य प्रदेश में 15 महीने चली कमलनाथ सरकार की एक बार फिर किरकिरी हो गई है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में जिस घोटाले का खुलासा कांग्रेस ने किया था और सीएम कमलनाथ ने आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ में मामला दर्ज करवा कर पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर बीके कुठियाला सहित 20 प्रोफेसरों को भ्रष्टाचार का दोषी बताया था, उन सभी को क्लीन चिट मिल गई है। EOW ने कोर्ट में इस मामले की क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है।
MCA घोटाले में कमलनाथ सरकार की क्या गलती
माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी में घोटाले का का दावा कांग्रेस पार्टी ने किया था। मुख्यमंत्री कमलनाथ के निर्देश पर जांच की कार्यवाही शुरू हुई थी। कमल नाथ सरकार के कार्यकाल में रजिस्ट्रार दीपेंद्र सिंह बघेल की जांच रिपोर्ट पर EOW ने इनके खिलाफ मामला दर्ज किया था, लेकिन इसके बाद कमलनाथ सरकार ने जांच प्रक्रिया को धीमा होने दिया। जो डाक्यूमेंट्स रजिस्ट्रार दीपेंद्र सिंह बघेल की जांच रिपोर्ट में मौजूद है, कमलनाथ सरकार EOW से उन्हें वेरीफाइड नहीं करवा पाई। नतीजा मामला कमजोर हो गया और सभी को क्लीन चिट मिल गई।
प्रो. बीके कुठियाला पर भ्रष्टाचार के कौन-कौन से आरोप लगाए गए थे
जनवरी 2010 को कुठियाला की नियुक्ति माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में की गई थी। उन पर आरोप थे कि आठ साल तीन महीने के कार्यकाल में कई लोगों को फायदा पहुंचाया। अपनी लंदन की यात्रा के दौरान पत्नी को भी विवि के खर्च पर यात्रा कराई। यह राशि बाद में समायोजित की गई। विवि के खर्च पर कई जगह जाकर नियमों का उल्लंघन किया। सर्जरी के लिए 58,150 रुपये, आंख के ऑपरेशन के लिए 1,69,467 रुपये का भुगतान विवि से किया गया। लैपटॉप, आइ-फोन की खरीदी की गई। इन सभी आरोपों के समर्थन में डॉक्युमेंट्री एविडेंस लगाए गए थे।
प्रो. बीके कुठियाला के साथ अन्य आरोपियों के नाम एवं आरोप
- डॉ. अनुराग सीठा- फर्जी तरीके से नियुक्ति पाने का आरोप।
- डॉ. पी. शशिकला- तीन बार पदोन्नति दी गई, जो नियम विरुद्ध है।
- डॉ. पवित्र श्रीवास्तव- कुठियाला के कार्यकाल में प्रोफेसर बनाया।
-डॉ. अविनाश वाजपेयी- पर्यावरण में Phd और प्रबंधन विभाग में प्रोफेसर और विभाग अध्यक्ष बने।
- डॉ. अरुण कुमार भगत- भोपाल कैंपस लाया गया, लेकिन दो साल के संविलियन पर दिल्ली लौटे।
- प्रो. संजय द्विवेदी- बिना पीएचडी प्रोफेसर बना दिए गए।
- डॉ. मोनिका वर्मा- नोएडा कैंपस भेजा। अनुभव कम होने के बाद भी पहले रीडर फिर प्रोफेसर बनाया।
-डॉ. कंचन भाटिया- फर्जी नियुक्ति की गई।
- डॉ. मनोज कुमार पचारिया- फर्जी नियुक्ति का आरोप।
- डॉ. आरती सारंग- योग्यता नहीं होने के बाद भी दी प्रोफेसर की रैंक।
- डॉ. रंजन सिंह- आरक्षण के तहत गलत तरीके से नियुक्ति दी।
- सुरेंद्र पाल- तबादला नोएडा कैंपस में किया गया। गलत तरीके से आरक्षण का लाभ दिया।
- डॉ. सौरभ मालवीय- विवादित तरीके से नियुक्ति दी।
- सूर्य प्रकाश- नियमों के खिलाफ नियुक्ति में आरक्षण का लाभ दिया।
- प्रदीप कुमार डहेरिया- विवि में काम करते हुए पत्रकारिता की नियमित डिग्री ली।
- सतेंद्र कुमार डहेरिया- बिना स्टडी लीव लिए पत्रकारिता की डिग्री ली।
- गजेंद्र सिंह अवश्या- नौकरी के दौरान डिग्री ली।
- डॉ. कपिल राज चंदोरिया- डिग्री संदिग्ध है।
- रजनी नागपाल- पत्रकारिता की डिग्री न होते हुए भी नियुक्ति दी गई।