भोपाल। पेंशन बुढ़ापे का सहारा है। भारत सरकार हर वर्ग को इसके दायरे में लाने की कोशिश कर रही है। मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांताध्यक्ष श्री प्रमोद तिवारी एवं कर्मचारी नेता कन्हैयालाल लक्षकार, राकेश पाटीदार व विनोद राठौर ने बताया कि सरकार द्वारा किसानों को 60 वर्ष की उम्र के बाद पेंशन के प्रावधान पर चिंतन व चिंता काबिले तारीफ है।
वर्ष 2004-05 से देश में अंशदायी पेंशन योजना सरकार द्वारा थोपने से कर्मचारियों में भारी नाराजगी व आर्थिक रूप से असुरक्षा की भावना बलवती हुई है। अंशदायी पेंशन योजना के नाम पर मासिक कटौती के साथ सरकारी अंशदान नियमित जमा नहीं हो रहा हैं। वहीं मासिक "कटौती राशि" के नियमित लेखे-जोखे से कर्मचारियों को अनभिज्ञ रखा जा रहा है। अपनी "बचत कमाई" पर कर्मचारियों का सेवानिवृत्ति तक कोई अधिकार नहीं रहा है। आर्थिक आजादी छीन कर, सरकार जबरिया अधिकारपूर्वक "कटौती की गई रकम" मन माफिक शेयर मार्केट में झोंक रही हैं। यह बाजार की जोखिमों के तहत है; इससे लाभ हो या हानि सरकार बेफिक्र है।
यही इकलौती ऐसी योजना है, जिसमें "जिसका धन है उसके नियंत्रण व इच्छा के विपरीत बचत राशि को शेयर बाजार में झोंका जा रहा हैं ।" अंशदायी पेंशन का सेवानिवृत्ति पर एक भाग का एकमुश्त भुगतान पर अपने सगे-संबंधियों की कुदृष्टि ही बुढ़ापे को अंधेरी सुरंग में धकेलने का कुत्सित प्रयास है। यह भुगतान भी महज "कर्मचारियों की काटी गई राशि ही होती है।" शासन का अंशदान सरकार अपने कब्जे में रखकर पांच सौ से लेकर हजार, दो हजार रूपये मासिक पेंशन भुगतान करती है जो काफी हद तक नगण्य, अपर्याप्त व नियमित गोली-दवाई का खर्चा भी नहीं है।
गुजरात के राजकोट में 27 सितम्बर 2017 को मानवता को शर्मसार करने वाली ह्रदयविदारक घटना जो सीसी टीवी फुटेज से पुरे विश्व में उजागर हुई थी। इसमें सहायक प्रोफेसर संदीप नथवानी फार्मेसी कालेज राजकोट ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर लकवाग्रस्त मां जयश्री बेन नथवानी की सेवा करने के बजाय जबरिया छत पर लेजाकर धकेल कर हत्या कर दी थी।
एनपीएस सरकारी नजरिये से लाभदायक हो सकती है, लेकिन कर्मचारियों के आर्थिक दृष्टिकोण से नुकसान देह है। यह कारगर है, तो वर्षो बाद भी सभी माननीय इसके दायरे से बाहर कैसे है? क्यों इन्हें शपथ लेते ही (चाहे अपना पांच वर्षीय कार्यकाल भी पूरा न करें) अभी भी ओपीएस के दायरे में मानकर लाभान्वित किया जाता है।
एक तरफ तो सर्वहारा वर्ग के भविष्य को लेकर सरकार चिंतातुर है; वहीं पुरानी पेंशन जो कर्मचारियों के बुढ़ापे का सुरक्षित सहारा है। इसे बंद कर असुरक्षित अंशदायी पेंशन योजना जबरिया थोपने से सरकार का भेदभाव साफ दिखाई देता है ! यह संविधान के समानता एवं मानवधिकारों का हनन है! पुरानी पेंशन योजना सम्मानजनक मासिक पेंशन, मूल्यसूचकांक आधारित होने से इसमें प्रति छः माह में "डीए" दर के समान "महंगाई राहत" मिलती है। साथ ही पेंशन का एक भाग बेचकर एकमुश्त राशि का भी प्रावधान है।
मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ मांग करता है कि 01 जनवरी 2004 से लागू एनपीएस को पुनः ओपीएस में समायोजित कर 1995 व इसके बाद शिक्षकों की भर्ती स्थानीय निकायों के माध्यम से शिक्षाकर्मी, संविदा व अध्यापक के रूप में की गई थी; इन्हें जुलाई 2018 से शासन के कर्मचारी माना गया है। उन्हें प्रथम नियुक्ति दिनांक से ही शासकीय कर्मचारी माना जावे। इनके साथ ही सभी विभागों के कर्मचारियों को एनपीएस के स्थान पर ओपीएस के दायरे में लिया जावे। या तो माननीयों को भी 2004 से एनपीएस दी जावे या भेदभाव समाप्त कर संविधान व मानवाधिकारों की रक्षा की जावे। केंद्र व राज्य सरकारों को संवेदनशील होकर इस पर त्वरित कार्यवाही की दरकार है।