भोपाल। प्रदेश में चालीस फीसदी से कम परिणाम वाले माध्यमिक 6299 उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के 1611 शिक्षकों की परीक्षा लेने पर शिक्षा विभाग आमादा है। मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ के प्रांताध्यक्ष-प्रमोद तिवारी, प्रांतीय उपाध्यक्ष-कन्हैयालाल लक्षकार, महामंत्री-हरिश बोयत, सचिवतृय-जगमीहन गुप्ता, यशवंत जोशी व विनोद राठौर ने संयुक्त प्रेस नोट में बताया कि कम परीक्षा परिणाम की आड़ में शिक्षकों की परीक्षा लेकर षड़यंत्र के तहत जानबूझकर बदनाम, जलिल व अपमानित करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। इससे शिक्षा विभाग में आक्रोश व नाराजगी व्याप्त है।
सभी विभागों में अधिकारियों कर्मचारियों व शिक्षकों की नियुक्ति शासन की कठोर भर्ती नियम व प्रक्रिया के तहत हुई है। सभी विभागों में नियमित निरीक्षण की पुख्ता व्यवस्था है। तमाम नीति नियमों को ताक में रखकर परीक्षा के लिए शिक्षा विभाग को ही निशाना बनाया गया है। दसवीं, बारहवीं के कम परीक्षा परिणाम के पीछे शिक्षक नहीं विभागीय परिस्थितियां जवाबदेह है। मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ मांग करता है कि सिविल सेवा नियमों में संशोधन कर अपडेट के लिये प्रतिवर्ष नियमित परीक्षा होना चाहिए।
इसमें मुख्य सचिव से लेकर कार्यालय सहायक तक के समस्त अधिकारी कर्मचारियों को शामिल किया जावे। वांछित परिणाम न आने पर नियोक्ता व तमाम निरीक्षणकर्ता अधिकारियों पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही होना चाहिए। केवल शिक्षकों की ही परीक्षा क्यों? जबकि शिक्षकों व विद्यालयों के निरीक्षण के लिए विभाग के जनशिक्षक, प्राचार्य, एपीसी, बीआरसी, सीआरसी जिला परियोजना समन्वयक, जिला शिक्षा अधिकारी, तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर, संभागीय अधिकारी के साथ राज्य शिक्षा केंद्र, लोक शिक्षण संचालनालय मप्र के अधिकारी तैनात है। इतने तामझाम के बाद कार्यक्षमता में वांछित सुधार नहीं होता है तो दोषी केवल शिक्षक कैसे हो सकता है?
विभागीय अधिकारियों को सुझावात्मक समीक्षा पर जोर देकर प्रयास करना चाहिए ताकि शासकीय अधिकारी कर्मचारी व शिक्षकों की कमियों को दूर कर कार्य दक्षता में निरंतरता बनी रहे। कार्य में लापरवाही व अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए सिविल सेवा आचरण नियमों के तहत कर्मचारियों के लिये कार्रवाई का प्रावधान मौजूद है। इसी प्रकार की कार्रवाई में गत वर्ष 16 शिक्षकों पर गाज गिरी थी। कुल मिलाकर इससे विभागीय छवि धूमिल हो रही है, अतः ऐसे आदेश निरस्त होना ही चाहिए।