भोपाल। मध्य प्रदेश की राजनीति में एक नया प्रश्न उपस्थित हुआ है। क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव हार चुके समर्थकों के दबाव में है। क्या श्रीमती इमरती देवी, ज्योतिरादित्य सिंधिया पर दबाव बना रही है और यही कारण है कि इस्तीफा देने के बाद भी वह ना तो सरकारी बंगले से अपना कब्जा छोड़ रही है और ना ही डिपार्टमेंट में अपनी दखलअंदाजी कम कर रही है।
कंसाना आदर्श और दंडोतिया वचन के पक्के
ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों में केवल एदल सिंह कंसाना एकमात्र ऐसा नाम है जिसने चुनाव हारने के तत्काल बाद मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और फिर मुड़कर मंत्रालय की तरफ नहीं देखा। कहा जा सकता है कि श्री कंसाना ने पूरे शौर्य के साथ चुनाव लड़ा और वीरता के साथ अपनी पराजय को स्वीकार किया। मीडिया द्वारा बार-बार सवाल उठाए जाने पर चुनाव हार चुके मंत्री श्री गिर्राज दंडोतिया ने भी देर से ही सही लेकिन इस्तीफा दिया तो फिर वापस सरकार में मंत्री की हैसियत से दखल अंदाजी नहीं की।
इमरती देवी ने तमाशा बना कर रख दिया
श्रीमती इमरती देवी ने अपने मंत्री पद का तमाशा बना कर रख दिया। मीडिया के तमाम दबाव के बाद बड़ी मुश्किल से मुख्यमंत्री को इस्तीफा सौंपा परंतु मंत्री पद का मोह छोड़ नहीं पा रहीं हैं। इस्तीफा देने के बाद भी ग्वालियर के एक सरकारी बंगले पर कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं, उल्टा नोटिस भेजने वाले अधिकारी को पद से हटवा दिया। पिछले दिनों कैबिनेट मीटिंग में अचानक शामिल हो गईं।
क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया पर दबाव बना रहीं हैं इमरती देवी
जब कोई मंत्री, मुख्यमंत्री को इस्तीफा सॉफ्ट है तो यह मान लिया जाता है कि उसने अपने विभाग का चार्ज मुख्यमंत्री को वापस कर दिया है। स्थिति को स्वीकार करना और दूसरे मंत्री को नियुक्त करना मुख्यमंत्री की व्यवस्था का प्रश्न है। मध्य प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में किसी ने इसका फायदा नहीं उठाया परंतु श्रीमती इमरती देवी के मीटिंग में शामिल होने की घटना ने सभी को चौंका कर रख दिया। नवभारत टाइम्स की एक खबर के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव हार चुके हैं समर्थकों के दबाव में है। क्या उस समर्थक का नाम इमरती देवी है। क्या इसीलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया, इमरती देवी को इस तरह की अपरंपरागत गतिविधियों से रोक नहीं पा रहे हैं और चुपचाप निंदा का शिकार हो रहे हैं।