भोपाल। मध्यप्रदेश में कांग्रेस तिनका-तिनका बिखरती जा रही है। कांग्रेस के जो नेता जनाधार रखते थे, या तो कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं या फिर किसी दूसरी पार्टी में। राजगढ़ में दिग्विजय सिंह को अपना सर्वे सर्वा मानने वाले पूर्व विधायक प्रताप मंडलोई जो खुद को 'दिग्गी राजा का प्रताप', यानी अपनी सभी सफलताओं का श्रेय दिग्विजय सिंह को देते थे, भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं। आज वह ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ खड़े दिखाई दिए जबकि एक वक्त ऐसा था जब दिग्विजय सिंह के सामने माधवराव सिंधिया को शिकस्त दिलाने के लिए कांग्रेस पार्टी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ गए थे।
दिग्विजय सिंह के सबसे भरोसेमंद नेता थे पूर्व विधायक प्रताप मंडलोई
राजगढ़ के प्रतिष्ठित पत्रकार श्री राजेश शर्मा की एक रिपोर्ट के अनुसार राजगढ़ के कांग्रेस नेता प्रताप मंडलोई जब कांग्रेस में थे उस समय वह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सबसे भरोसेमंद विधायकों में शामिल थे। दिग्विजय सिंह के दूसरे कार्यकाल में 1998 में श्री मंडलोई कांग्रेस से विधायक बने थे।
मध्यप्रदेश में लोगों ने दिग्गी राजा का प्रताप के नाम से जानते थे
विधायक बनने के दौरान प्रताप मंडलोई ने अपनी गा़डी पर पीछे लिखवाया था कि राजा का प्रताप...। उनका यह श्लोगन जिले ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में खासा चर्चित रहा था। जिले में उन्हें विधायक रहते हुए व बाद में भी राजा के प्रताप के रूप में जानने लगे थे। इसके बाद 2003 के चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। इसके बाद 2018 का चुनाव वह कांग्रेस से बागी होकर लडे थे ओर करीब 35 हजार वोट लाए थे। तब ही से वह किसी पार्टी में नहीं थे।
दिग्विजय सिंह के कहने पर माधवराव सिंधिया से भिड़ गए थे
बात 1993 के आम चुनाव की है, जब दिग्विजय सिंह का प्रदेश की राजनीति में खासा दबदबा था ओर वह पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष थे। उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया का भी जिले में दखल था। यही कारण था कि 1993 के चुनाव में चार जिले के चार टिकट दिग्विजय सिंह ने दिए थे, जबकि ब्यावरा विधानसभा का टिकट माधवराव सिंधिया ने अपने खास कुसुमकांत मित्तल को दिया था।
माधवराव सिंधिया के उम्मीदवार की हार का कारण थे प्रताप मंडलोई
उसका परिणाम यह हुआ कि दिग्विजय सिंह के खास प्रताप मंडलोई उस चुनाव में ब्यावरा से निर्दलीय उम्मीदवार के मैदान में चुनाव में उतर गए थे। ऐसे में यहां कांग्रेस व महाराज माधवराव सिंधिया के उम्मीदवार कुसुमकांत मित्तल चुनाव हार गए थे व भाजपा के बद्रलाल यादव चुनाव जीतने में सफल रहे थे। इसके बाद 1998 के चुनाव में जब दिग्विजयसिंह ने उन्हें राजग़ढ से टिकट दिया ओर प्रताप विधायक बने तो राजनीतिक जानकर इसकाे 1993 के चुनाव के बाद प्रसाद मिलने के रूप में देख रहे थे।