इंदौर। कमलनाथ सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग को दिए गए 27% आरक्षण का मामला हाईकोर्ट में लंबित होने के कारण मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा राज्यसेवा प्रारंभिक परीक्षा- 2019 का रिजल्ट घोषित नहीं किया जा रहा था। हाई कोर्ट में डिसीजन नहीं हुआ है फिर भी मध्य प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन ने रिजल्ट जारी कर दिया। सवाल यह है कि एमपीपीएससी के पास अचानक ऐसी कौन सी जादू की छड़ी आ गई, जो हाई कोर्ट के डिसीजन का डर खत्म हो गया।
एमपीपीएससी 2019 में अनारक्षित 40%, पिछड़ा वर्ग 27%
पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर जारी विवाद के चलते पीएससी राज्य सेवा प्रारंभिक परीक्षा का रिजल्ट जारी नहीं कर पा रहा था। 15 दिसंबर को सामान्य प्रशासन विभाग ने एक आदेश जारी कर PSC के नतीजे जारी करने का रास्ता खोल दिया। सामान्य प्रशासन ने अनारक्षित श्रेणी के पदों को 40 प्रतिशत के हिसाब से मानकर अनारक्षित उम्मीदवारों का चयन करने के निर्देश दिए। साथ ही ओबीसी आरक्षण में भी किसी प्रकार का बदलाव नहीं करते हुए उसे भी जस का तस रखकर प्रारंभिक परीक्षा का रिजल्ट बनाने के लिए कह दिया। इसके बाद पीएससी ने कुल 571 पदों के मुकाबले 10 हजार 700 से ज्यादा उम्मीदवारों को प्रारंभिक परीक्षा में सफल करार देते हुए अगले चरण के लिए योग्य मान लिया।
एमपीपीएससी ने 8565 की जगह 10700 से ज्यादा उम्मीदवारों को मेंस के लिए भेजा
राज्यसेवा प्रारंभिक परीक्षा दरअसल अगले दौर में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षा होती है। इसके बाद मुख्य परीक्षा और फिर इंटरव्यू होते हैं। अंतिम चयन इंटरव्यू के आधार पर होता है। राज्यसेवा में कुल विज्ञापित पदों के 15 गुना उम्मीदवार प्रारंभिक परीक्षा से चुने जाते हैं। इस बार की परीक्षा में 571 पद है। इस हिसाब से प्रारंभिक परीक्षा से अगले दौर के लिए 8,565 उम्मीदवारों को चुना जाता। पीएससी ने ओबीसी और अनारक्षित वर्ग को पूरा लाभ देकर 10700 से भी ज्यादा उम्मीदवारों को अगले दौर में प्रवेश दे दिया। दरअसल अब तक कोर्ट से निर्णय नहीं आने के चलते राज्य सेवा की पूरी प्रक्रिया रुक रही थी। बीच का रास्ता निकालकर रिजल्ट जारी करने का लाभ ये होगा कि प्रक्रिया चलती रहेगी। अंतिम दौर के नतीजे पीएससी जारी नहीं करेगा। आरक्षण पर कोर्ट के निर्णय के बाद अंतिम मेरिट में उसी आधार पर बनाई जाए दी।
नया फार्मूला फायदेमंद है या नुकसानदायक
विशेषज्ञ अब गुणा भाग लगा रहे हैं कि नया फार्मूला फायदेमंद है या नुकसानदायक। मोटे तौर पर देखें तो 8500 की जगह उम्मीदवारों की संख्या 10700 हो गई। यानी कंपटीशन टफ हो गया है। यहां कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि जो उम्मीदवार प्रारंभिक परीक्षा में मेरिट लिस्ट में सबसे नीचे है वह अगली परीक्षा में भी नीचे ही रहेगा। उसे चांस मिला है, वह टॉप भी कर सकता है। मामला अनारक्षित श्रेणी और पिछड़ा वर्ग के बीच का है। जातिगत राजनीति भी हो सकती है। देखते हैं कैंडीडेट्स का ओपिनियन क्या आता है