ललित मुद्गल,शिवपुरी। पीएचई के कार्यपालन यंत्री एसएल बाथम, तत्कालीन सहायक यंत्री केजी सक्सेना, उपयंत्री एमडी गौड़, उपयंत्री डीपी सिंह और ग्वालियर की ठेकेदार कंपनी मैसर्स जैन एंड राय कंपनी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में लोकायुक्त ने FIR दर्ज करवाई है। आरोप है कि इन सभी ने मिलकर शिवपुरी शहर में फर्जी सड़क बनाई और उसका असल में पेमेंट कर दिया।
भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों के खिलाफ किन धाराओं में मामला दर्ज हुआ
मामला 2018 में किए गए भुगतान का है। लोकायुक्त ने इन सभी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7ए एवं आइपीसी की धारा 120बीए, 420ए, 467ए, 468 और 471 में मामला दर्ज किया है। लोकायुक्त जांच में प्रथम दृष्टया इन सभी आरोपों को प्रमाणित पाया है और सभी संबंधित सक्षम अधिकारियों को कार्रवाई के लिए पत्र लिखा है।
सीवर प्रोजेक्ट में क्या होना था
शक्तिपुरम खुड़ा निवासी अशफाक खान ने शिकायत की थी कि सीवर प्रोजेक्ट की DPR में क्रियान्वन एजेंसी द्वारा नगर पालिका की सड़कों को सीवर लाइन बिछाने के लिए खोदा जाना था। इसके बाद लाइन बिछाकर उसका भराव कर काम्पेक्शन कर WBM ROAD डालकर नगर पालिका को पुनः वापस करना था। नपा को इन पर CC ROAD डालना था।
ठेकेदार कंपनी और अधिकारियों ने मिलकर क्या भ्रष्टाचार किया
PHE के अधिकारियों ने क्रियान्वयन एजेंसी के साथ मिलीभगत करके ना तो जमीन का काम्पेक्शन और समतलीकरण किया और न ही 47 WBM ROAD का निर्माण किया। इसके बिना ही सड़कें नपा को हैंडओवर कर दी गईं। इनमें से 30 सड़कों का भौतिक सत्यापन भी कर लिया गया है जबकि 17 सड़कों पर सीसी रोड डाले जाने की वजह से उनका सत्यापन नहीं हो पाया है।
13 नवंबर 2020 को दर्ज की गई FIR अब तक छुपाई गई
जांच के दौरान लोकायुक्त की विशेष पुलिस थाना बल ने वहां रहने वाले लोगों के बयान भी लिए हैं। काम हुए बिना ही ईई एसएल बाथम ने कंपनी को 1 करोड़ 12 लाख रुपये का भुगतान कर दिया था। लोकायुक्त ने इस मामले में 13 नवंबर 2020 को FIR दर्ज की है, लेकिन विभाग ने किसी को इसकी जानकारी नहीं लगने दी।
लोकायुक्त टीम को जांच में क्या मिला
उपयंत्री एमडी गौड़ सीवर प्रोजेक्ट में पदस्थ ही नहीं थे, बल्कि वे स्टोर इंचार्ज थे। यह फर्जी एंट्री करने के लिए उत्तरदायी हैं। अप्रैल 2015 में कार्यपालन यंत्री विनोद कुमार छारी ने सब डिवीजन परियोजना को माप पुस्तिका क्रमांक 105 जारी की गई थी। मेजरमेंट के लिए 26.09.2015 को सहायक यंत्री केजी सक्सेना ने उपयंत्री एमडी गौड़ को जारी की थी।
इसमें पेज क्रमांक 24 से डब्ल्यूबीएम और गिट्टी मुरहम व काम्पेक्शन के संबंध में हे जिसमें उपयंत्री एमडी गौड़ ने मापांकन दर्ज किए हैं। पेज नं 26. 27 पर एमडी गौड़ ने हस्ताक्षर करने के बाद काटा है। इस पर हस्ताक्षरों के नीचे 19.09.2015 अंकित है। पेज 85 पर हस्ताक्षर काटा है जिस पर 25.05.2016 अंकित है जिसे ओवरराइट किया गया है। पेज 28 के माप पर गौड़ ने 22.09.2015 को हस्ताक्षर किये हैं।
अब इसमें कमाल की बात यह है कि गौड़ को माप पुस्तिका जारी ही 22.09.2015 को की गई थी। पुस्तिका जारी होने के पहले ही गौड़ ने मापांकन कर डाला। कार्यपालन यंत्री को कार्य के 10 प्रतिशत का सत्यापन करना था जो नहीं किया। इसके साथ ही मापांकन पुस्तिका में जगह ण्जगह पर इस तरह की गड़बड़ी जांच में सामने आई है। इसमें इस तरह से मापांकन किया गया है जो व्यवहारिक रूप से संभव ही नहीं है। इसके आधार पर पाया गया है कि कार्यपालन यंत्री एसएल बाथम, सहायक यंत्री केजी सक्सेना, उपयंत्री एमडी गौड़, उपयंत्री डीपी सिंह और ग्वालियर की ठेकेदार कंपनी मैसर्स जैन एंड राय ने मिथ्या प्रविष्टियां की हैं।
आजीवन कारावास की सजा का है प्रावधान
लोकायुक्त ने चारों अधिकारी और ठेकेदार कंपनी पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7ए आइपीसी की धारा 120बी, 420, 467, 468 और 471 के तहत मामला दर्ज किया है। धारा 120बी आपराधिक षडयंत्र की धारा है जिसमें सात साल की सजा हो सकती है। वहीं धारा 420 में भी साल साल तक की सजा है। शासकीय दस्तावेजों के कूटकरण की धाराएं 467, 468 और 471 में से 467 में आजीवन कारावास की सजा का प्राविधान है। धारा 467 व्यक्तिगत लाभ हासिल करने के लिए सरकारी दस्तावेजों के कूटकरन की धारा है।
इनका कहना है
अभी आरोप साबित नहीं हुए हैं। हमारा पक्ष सुना ही नहीं गया है। जब मामले की विवेचना होगी तो उसमें सारी सच्चाई सामने आ जाएगी।
एसएल बाथम, ईई, पीएचई।