कोरोना दुष्काल और मीडिया के हाल - Pratidin

Bhopal Samachar
कोरोना के दुष्काल वर्ष 2020 विश्व में चीन के पत्रकारों के साथ सबसे बुरा बीता |चीन में 47 पत्रकार जेल में हैं, जिनमें से तीन कोविड-19 महामारी पर सरकार के कदमों से जुड़ी खबरों के लिए जेल में हैं। इसी प्रकार मिस्र में 27 पत्रकारों को जेल में जाना पड़ा है, जिनमें से कम से कम तीन को कोविड-19  महामारी से जुड़ी खबरों के लिए जेल जाना पड़ा। वहीं मिस्र और होंडुरास में जेल में संक्रमित होने से पत्रकारों की मौत हो गई। वैश्विक स्तर पर इस महीने की शुरुआत तक के आंकड़े कहते हैं अपने काम की वजह से 274 पत्रकारों को जेल जाना पड़ा है|जेल जाने वाले पत्रकारों में से लगभग सभी अपने देश से संबंधित मामलों की रिपोर्टिंग कर रहे थे। जेल जाने वाले पत्रकारों में से 36 महिला पत्रकार भी हैं|

अमेरिका की एक निगरानी संस्था ने इस साल रिकॉर्ड संख्या में पत्रकारों को जेल भेजे जाने का खुलासा किया है। पत्रकारों को जेल में रखने के मामले में चीन सबसे ऊपर है। इसके बाद तुर्की और मिस्त्र का स्थान है। वहीं बेलारूस और इथियोपिया में राजनीतिक गतिरोध की वजह से भी बड़ी संख्या में पत्रकार हिरासत में हैं। यह आंकड़ा कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने जारी किया है। कमेटी ने कहा कि यह लगातार पांचवां ऐसा वर्ष है, जब कम से कम २५०  पत्रकार हिरासत में हैं, जो कि सरकारों के दमनकारी कदमों को दर्शाता है।

अमेरिका प्रेस फ्रीडम ट्रेकर ने बताया कि इस महीने की शुरुआत में अमेरिका में किसी पत्रकार की न तो हत्या हुई है और न ही कोई अभी जेल में हैं, लेकिन २०२० में ११० पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया और उन पर आपराधिक आरोप लगाये गए।. वहीं ३००  को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, जिनमें से कुछ पत्रकार एक काले व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉइड की पुलिस हिरासत में हुई मौत के बाद नस्लीय न्याय को लेकर उभरे विरोध प्रदर्शन की रिपोर्टिंग कर रहे थे।

भारत में भी ऐसे मामले सामने आये हैं| मीडिया की स्वतंत्रता के लिए काम करने वाले दो अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस संबंध में पत्र लिखा है|ऑस्ट्रिया स्थित इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट (आईपीआई) और बेल्जियम-स्थित इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) ने पत्र में प्रधानमंत्री को लिखा है कि पिछले कुछ महीनों में देश के अलग अलग हिस्सों में कई पत्रकारों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा १२४ ए के तहत राजद्रोह का आरोप लगा कर मामले दर्ज किए जिसमें तीन साल जेल की सजा का प्रावधान है|

कमेटी ने बताया कि इस साल अब तक २९  पत्रकार मारे जा चुके हैं, जो कि पिछले साल से ज्यादा है। पिछले साल २६  पत्रकार मारे गये थे। हालांकि यह आंकड़ा पिछले दशक के शुरुआती समय से कम है। २०१२  और २०१३  में ७४  पत्रकार मारे गये थे|

भारत में धवल पटेल गुजरात के अहमदाबाद से "फेस ऑफ नेशन" नामक समाचार वेबसाइट चलाते हैं. उन्होंने मई में अपनी वेबसाइट पर एक खबर छापी थी कि गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी द्वारा राज्य में कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम में हुई खामियों की वजह से बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा सकती है| राजनीतिक अदला बदली की खबरें आए दिन मीडिया में आती रहती हैं, इसलिए धवल पटेल को जरा भी अंदेशा नहीं हुआ कि इस खबर को छापने की वजह से वो बड़ी मुसीबत में फसने वाले हैं.

अहमदाबाद पुलिस ने इस खबर को छापने के लिए खुद ही पटेल के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में एफआईआर दर्ज की और उन्हें हवालात में भी रखा. बाद में हाई कोर्ट से जमानत करानी पड़ी। 

भारत में इन दिनों पत्रकारों के खिलाफ सिर्फ राजद्रोह के मामले ही नहीं दर्ज किए जा रहे हैं, बल्कि सरकारों की खामियां उजागर करने वाले पत्रकारों और संस्थानों के खिलाफ विज्ञापन बंद करना, पत्रकारों का रास्ता रोकना, उनके फोन टैप करना और उन पर पुलिस द्वारा हमले करवाना जैसे कदम भी उठाए जा रहे हैं|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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