कुपोषण से मरते बच्चे, आत्महत्या करते किसान, उधड़ी सड़के और नागरिक सुविधाओं के नाम सिर्फ टोटके ,एक दूसरे पर करोड़ों की हेराफेरी के आरोप लगाते राजनीतिक दल, उनके नेता और नेताओं की चाकरी में लगे उनके चहेते अफसर ही पिछले 30 वर्षों से मध्यप्रदेश की पहचान बने हुए है। जिसने भी यह नारा दिया है, बहुत ही सोच समझ कर दिया है।” मध्यप्रदेश अजब है बहुत ही गजब है।”
सब जानते हैं, मध्यप्रदेश में एक सरकार बिजली, पानी सड़क की समस्या के कारण “बन्टाधार” का ख़िताब पाकर जा चुकी है। जो भी राजनीतिक दल सत्ता में आता है यही सब करता है, प्रतिपक्ष चाहे यह रहे या वह रहे करोड़ों की हेराफेरी प्रदेश का राजनीतिक चरित्र बन गया है। दोनों यह जानते हैं की सरकारी योजना से कैसे धन निचोडा जाता है। दोनों ने इसके लिए अपने चहेते अफसरों की सूची बना रखी है जो आर्थिक शोषण को अंजाम दे देती है। अब पक्ष- प्रतिपक्ष दोनों ही ऐसे अफसरों के नाम उछाल रहे है, पिछले एक सप्ताह से ऐसे कई सफेदपोश नाम चर्चा में है। हद तो ये सबको मालूम है भ्रष्टाचार के गटर का मुंह कहाँ खुला है और भ्रष्टाचार सरोवर में कौन- कौन गोते लगा रहा है।
हंडी के चावल की तर्ज यह मामला जिसे आयकर विभाग ने मध्य प्रदेश में एक बड़े मनी लॉन्ड्रिंग घोटाले का नाम दिया है। केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने बताया कि उन्होंने एक रेड के दौरान 105 करोड़ की बेनामी सम्पत्ति का खुलासा किया ये सभी सम्पत्ति खेती और अन्य नाम पर जमा की गई थी। आयकर विभाग के 150 से अधिक अधिकारियों और अन्य कर्मियों इसकी गणना में कई दिन लगे।इन बिल्डरों से जुड़े 20 ठिकानों पर छापा मारा और सैकड़ों करोड़ रुपए की 110 से ज्यादा बेनामी संपत्तियों से जुड़े दस्तावेज भी बरामद किए गये।
छापेमारी के दौरान आयकर विभाग को सम्पत्ति के कागजात पेपर्स के साथ करोडो रुपये के ज्वेलरी और कैश भी मिलते हैं। इनमे पक्ष- प्रतिपक्ष के छोटे- बड़े नाम के उन अफसरों के नाम भी जुड़े हैं। जिन्होंने देश सेवा की शपथ ली है। इनके साथ उन व्यापारियों का गठजोड़ है, जिनकी ख्याति ठीक नहीं है। इन दुकानदारों ने अपनी दुकान में काम करने वाले स्टाफ के नाम से भी बेनामी सम्पत्ति ले रखी थी।
राजधानी भोपाल और प्रदेश के बड़े शहरों में ऐसे कई साझे प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं। जिनमें कालोनी, बाज़ार, अस्पताल मेडिकल कालेज भी है। दूर दराज़ गाँव में स्थापित इन परियोजनाओं के लिए शासकीय योजनाओं से अवशोषित धन का चमत्कारिक रूप से स्थानान्तरण हो जाता है।
छापे मारने में विभाग को कई बार छद्म प्रक्रिया का सहारा लेना होता है। जैसे आयकर विभाग की टीमों ने एक बार छापे मारने के लिए जिन गाड़ियों का प्रयोग किया, उन पर ‘मध्य प्रदेश हेल्थ डिपार्टमेंट कोविड-19 टीम वेलकम्स यू’ (मध्य प्रदेश स्वास्थ्य विभाग कोविड-19 टीम आपका स्वागत करती है) जैसे वाक्य लिखे थे। यह सब इसलिए किया गया कि जहां छापे मारे जाने थे,वहां छापामार टीम को हमले की आशंका थी।
आयकर विभाग ने एक मामले में 357 एकड़ जमीन, सात फ्लैट, छह मकान, चार डुप्लेक्स, दो होटल, दो शॉपिंग मॉल्स, चार दुकानें और दो हॉस्टल्स से जुड़े दस्तावेज छापों के दौरान बरामद किए गये। आईटी विभाग के एक सूत्र नेपुष्टि की है कि, "इनमें से अधिकांश संपत्तियां उन कर्मचारियों के नाम पर पंजीकृत हैं जो प्रति माह 15000 रुपये से कम कमाते हैं।"
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।