देश की आर्थिकी संभल नहीं रही है। किसानॉ के आन्दोलन का प्रभाव भी आगे आने वाले वित्त वर्ष पर होगा अभी अनुमान अच्छे नहीं है। बैंकिग उद्योग भी आगे आने वाले समय को कष्टपूर्ण मान रहा है। सही मायने में कोरोना दुष्काल और मंदी से जूझती अर्थव्यवस्था के सामने बैंकों के फंसे हुए कर्जों के बढ़ते भार की गंभीर चुनौती भी है। भारतीय रिजर्व बैंक का आकलन है कि बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) मार्च, 2020 के 8.5 प्रतिशत से बढ़कर मार्च, २०२१ में 12.5 प्रतिशत हो सकती है।
इसके साथ यह चेतावनी भी दी गयी थी कि यदि आर्थिक स्थितियां और बिगड़ती हैं, तो यह अनुपात 14.7 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। व्यावसायिक बैंकों में यह आंकड़ा 15 प्रतिशत से भी आगे जा सकता है। इस वर्ष जुलाई में केंद्रीय बैंक ने आशंका जतायी थी कि फंसे हुए कर्ज की मात्रा दो दशकों में सबसे अधिक हो सकती है।
बैंक की आर्थिक दशा परिसंपत्तियों पर और बैंको की परिसंपत्तियों पर राष्ट्र की समृद्धि निर्भर है। बैंकों की परिसम्पत्ति की गुणवत्ता में कमी इन दिनों बैंकों के साथ समूची राष्ट्रीय आर्थिकी के लिए चिंताजनक है। आर्थिक वृद्धि में गिरावट और लॉकडाउन समेत विभिन्न कारकों की वजह से बाजार में मांग कम होने से बैंकों से ऋण वितरण भी अपेक्षाकृत बहुत कम हुआ है। इससे भी बैंकों पर दबाव बढ़ा है, इन चुनौतियों से निपटने के लिए चालू वित्त वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 20 हजार करोड़ रुपये की पूंजी मुहैया कराने की घोषणा सरकार पहले ही कर चुकी है।
सब जानते हैं कि बीते तीन सालों में सरकार ने बैंकों को लगातार पूंजी दी है, किंतु यदि एनपीए की समस्या का समय रहते समुचित समाधान नहीं हुआ, तो बैंकों, विशेष रूप से छोटे व कमजोर बैंकों, के लिए कर्ज दे पाना मुश्किल हो जायेगा। माना जा रहा है कि आगामी मार्च तक पांच बैंक पूंजी का न्यूनतम स्तर को भी बरकरार नहीं रख पायेंगे। उस स्थिति में सरकार को अतिरिक्त धन की व्यवस्था करनी पड़ सकती है, लेकिन अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने तथा सरकारी योजनाओं व कार्यक्रमों के लिए भी सरकार को राहत पैकेज के तहत धन मुहैया कराने की जिम्मेदारी है। यहाँ फिर एक बार भारत की अर्थव्यस्था के प्रथम बिंदु किसान और किसानी पर विचार के साथ ऋण न चुकाने वाले उद्ध्योगपतियों के व्यवहार पर विचार करना होगा।
ऐसे में एनपीए से निपटने के तात्कालिक उपाय के रूप में फंसे हुए अधिकतर कर्जों को परिसंपत्ति रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों को बेचा गया है, जिसके तहत वसूली के बाद भुगतान करने की व्यवस्था है| जानकारों की मानें, तो इसमें वसूली की दर १० से १२ प्रतिशत ही है, इस कारण से इस तरीके को बहुत कारगर नहीं माना जा सकता है| कुछ नया करना और कुछ नया सोचना समय की आवश्यकता है |
ऐसे में भारतीय उद्योग संघ की प्रतिनिधि संस्था, भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) के इस प्रस्ताव पर सरकार को विचार करना चाहिए कि एनपीए को अलग बैंक बनाकर उसमें स्थानांतरित कर देना चाहिए जिससे सरकारी बैंक दबावमुक्त होकर नये सिरे से स्वयं को व्यवस्थित कर सकें| इस प्रस्ताव में देशी-विदेशी निवेशकों को भी एनपीए खरीदने की अनुमति देने का सुझाव है| इस सुझाव के अलावा और भी विकल्प खोजे जा सकते हैं |
स्मरण रहे कि इससे पहले मई में भारतीय बैंक एसोसिएशन ने रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय को ऐसा ही सुझाव दिया था| सब यह भी जानते है कि बैंक फंसे हुए कर्ज से संबंधित पिछले संकट से उबरने की कोशिश में ही लगे थे कि कोरोना संकट आ खड़ा हुआ| सरकार को अन्य उपायों के साथ बैंकों व उद्योग जगत के सुझावों पर ध्यान देना चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था के आधार बैंकों को स्थायित्व मिल सके| इसके साथ ही सरकार को देश की आर्थिकी की नींव किसानी और किसान है यह भी याद रखना चाहिए |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।