कहने को भारत जलवायु परिवर्तन रोकने के मुद्दे पर निर्धारित लक्ष्य से भी अधिक काम कर रहा हैंI लेकिन नवीनीकृत ऊर्जा क्षेत्र के आंकड़े जो कहानी कहते है वो पिछले दो वर्षों से मंदी दृश्य दिखाते है। सौर और पवन ऊर्जा की अनेक कम्पनियां बंद हो चुकी हैं, अनेक परियोजनाएं रोक दी गई हैं। भारत ही एक ऐसा देश है जहां कोयले की मांग और खपत लगातार बढ़ती जा रही है और कोयला आधारित नए उद्योग आज भी स्थापित किये जा रहे हैं। भारत के कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन के उत्सर्जन के आंकड़ों पर लगातार देशी-विदेशी वैज्ञानिक प्रश्न चिह्न लगाते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत वनों के आंकड़ों पर भी सवाल खड़ा किया था।
इन दिनों देश में अधिकतर बड़े ताप बिजली घर गौतम अडानी की कंपनियों के नाम हैं और अनेक नए बड़े बिजलीघर उनकी कंपनी स्थापित भी कर रही है। समस्या यह है कि अपने देश में कोयला के भंडार तो बहुत हैं पर उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं है। ऑस्ट्रेलिया के कोयले की गुणवत्ता बहुत अच्छी मानी जाती है। अडानी की कंपनी ने ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े कोयला खदानों में से एक को खरीदा और अब उस पर काम अंतिम चरण में है और जल्द ही उत्पादन शुरू होगा। इसके लिए बड़े पैमाने पर वनस्पतियों का सफाया किया गया, रेल लाइन बिछाने के लिए जंगल काटे गए और पोर्ट बनाने के लिए कोरल रीफ को बर्बाद किया गयाI जाहिर है, देश के ताप बिजली घरों को चलाने के लिए ऑस्ट्रेलिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ गया।
दुनिया भर में बड़ी खान-पान से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां जो चिकेन परोसती हैं, उन मुर्गों/मुर्गियों का मुख्य भोजन सोयाबीन है, जो पहले चीन से मंगाया जाता था, पर अब चीन का बहिष्कार करने के चक्कर में ब्राजील से मंगाया जाता है। ब्राजील में सोयाबीन की खेती का क्षेत्र बढाने के नाम पर अमेजन के वर्षा वन काटे जा रहे हैं, जिनसे एक तरफ तो पर्यावरण का विनाश हो रहा है तो दूसरी तरफ ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में मिल रही हैं। ब्राजील के अमेजन के वर्षा वनों को धरती का फेफड़ा कहा जाता है, क्योंकि हवा को साफ करने में इनका बड़ा योगदान है।
जाहिर है कि किसी देश द्वारा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बता पाना कठिन काम है, क्योंकि मुक्त व्यापार के इस दौर में हरेक देश के कारण उत्सर्जन दूसरे देशों में भी हो रहा है। अब, अमेरिका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन के निर्वाचन की इलेक्टोरल कॉलेज से स्वीकृति मिलने के बाद से फिर से जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण से संबंधित पेरिस समझौते, जिसके हाल में ही पांच वर्ष पूरे हुए हैं, की चर्चा जोर-शोर से की जा रही है। जो बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित अपनी प्रतिबद्धता को फिर से दुहराया है। उनके अनुसार राष्ट्रपति पद का जिम्मा संभालते ही पहले दिन वे पेरिस समझौते में वापस शामिल होने की कार्यवाही शुरू कर देंगे।
पेरिस समझौते को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि देशों और दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की सटीक जानकारी हो, पर समस्या यह है कि जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के बारे में वैज्ञानिकों को जितनी ठोस जानकारी है, उतनी इसके उत्सर्जन के बारे में नहीं है। नीतियों में भले ही विभिन्न देशों में भिन्नता हो, पर व्यापार के मामले में सभी देश एक दूसरे से मिले हुए हैं। एक देश की मांग दूसरे देश से पूरी हो रही है, ऐसे में दूसरे देश के ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का जिम्मेदार किसे माना जाएगा, यह भी स्पष्ट नहीं है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।