2021 नया साल आ गया, पूरा देश ठंड से ठिठुर रहा है। अब इसे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों का असर कहें या मौसम की तल्खी कि रक्त जमाती सर्दी ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। पहाड़ी इलाके बर्फ की सफेद चादर में लिपटे हैं, पारा ऋणात्मक हुआ है, वहीं मैदानी इलाके भीषण शीतलहर की चपेट में हैं। पारा लुढ़कने की स्थिति में मैदानी इलाके कांप रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा गरीब तबके पर इसकी मार पड़ रही है।
देश के मुख्य मौसम विभाग और राज्य के मौसम विभाग के मानकों में मैदानी इलाकों की भीषण ठंड का निर्धारण न्यूनतम तापमान के दस डिग्री से नीचे जाने तथा अधिकतम तापमान में साढ़े छह डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट दर्ज होने पर होता है। उत्तर भारत में दिल्ली, हरियाणा-पंजाब ,राजस्थान के साथ मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। दरअसल, तापमान में यह असमान्य गिरावट सेहत के लिये घातक मानी जाती है, जिसके अनुरूप शरीर को ढलने में वक्त लगता है। कोरोना संकट में यह स्थिति चिंताजनक है। साथ ही अन्य वायरसों के प्रसार का खतरा भी बढ़ जाता है।
चिकित्सा विज्ञान का स्थापित सिद्धांत है कि तापमान में अप्रत्याशित गिरावट से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से वायरसों का संक्रमण शरीर में तेजी से होता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि बूढ़े-बुजर्गों तथा बीमार लोगों का खास ध्यान रखा जाये। विषम स्थिति में एक अभिभावक होने के नाते लंबे समय से खुले आसमान तले आंदोलनरत किसानों के बारे में भी सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए।सरकार अभी अपनी इस भूमिका का निर्वाह नहीं कर पा रही है।
भारत में हमेशा पर्वतीय इलाकों में बर्फबारी के बाद मैदानी इलाकों में शीतलहर सामान्य घटना है, लेकिन इस बार मौसम के व्यवहार में अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिल रहा। जहां एक ओर तापमान में गिरावट असमान है वहीं असामान्य भी है। तापमान तेजी से गोता लगा रहा है। तापमान में गिरावट के रिकॉर्ड बन रहे हैं। एक ओर सर्द हवाएं जन-जीवन में कर्फ्यू लगा रही हैं, वहीं कोहरे के चलते यातायात बाधित है। चुनौती कोरोना संकट के कारण बड़ी है।
इस समय बड़ी संख्या में रैन-बसेरे बनाये जाने की जरूरत है क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग का भी ख्याल रखना भी जरूरी है। आम तौर पर बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन व अस्पताल के पास रैन-बसेरे बनाये जाते थे। लेकिन ये स्थान पूरी तरह खुले नहीं है, अत: गरीब लोग कम नजर आ रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि गरीबी कम हो गई है। उनका दायरा बड़ा हो गया है। उनकी देखभाल हेतु स्थानीय प्रशासन व निकायों को आगे आना होगा। उनका संवेदनशील व्यवहार कई जानें बचा सकता है। समाज की भी कोशिश हो कि ठंड से पहले कोई भूख से न मरे।
इस बीच मौसम विभाग ने ठंड की तीव्रता को देखते हुए चेतावनी जारी की है कि साल के अंतिम और अंग्रेजी नये साल पहले सप्ताह के दिनों में पश्चिमी विक्षोभ के कारण कंपाने वाली सर्दी पड़ेगी। ऐसे में नये साल के जश्न में शराब के सेवन से बचें क्योंकि शीतलहर से कई तरह के फ्लू फैल सकते हैं। इस दौरान शराब पीने से शरीर और ठंडा तथा जानलेवा हो सकता है। इससे बचे, अपने नये साल को अपने साथ सब के लिए शुभ बनाये।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।