देश की आर्थिकी करवट बदल रही है,कोविड के दुष्काल में गिरावट के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के फिर से उठ खडे़ होने के संकेत मिल रहे है। आर्थिकी की करवट सही दिशा में है या नहीं इसका अंदाजा इस बात से भी लग जाएगा कि देश के कॉलेजों व यूनिवर्सिटियों में प्लेसमेंट कैसे होंगे और युवा इंजीनियरों व एमबीए डिग्री धारियों को कैसी नौकरियां मिलेंगी? देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में सारे काम अब धीरे-धीरे शुरू हो रहे हैं। अभी तक पठन-पाठन का काम ऑनलाइन किया जा रहा था, किंतु अब कैंपसों में विद्यार्थियों के लौटने का इंतजार किया जा रहा है। उधर, देश के शीर्षस्थ इंजीनियरिंग एवं प्रबंध संस्थानों में प्लेसमेंट की हलचल शुरू हो चुकी है।
यह एक अच्छी खबर है कि १ दिसंबर, २०२० से पुराने आईआईटी संस्थानों में वर्चुअल ढंग से प्लेसमेंट का दौर शुरू हो चुका है। पहले की तरह कंपनियों के प्रतिनिधि विद्यार्थियों के इंटरव्यू व चयन के लिए कैंपस में नहीं आए हैं। इसकी तैयारियां कई महीने से चल रही थीं। आईआईटी मुंबई, कानपुर, खड़गपुर, मद्रास और दिल्ली से जो प्लेसमेंट की खबरें आ रही हैं, उनसे लग रहा है कि नियोक्ता कंपनियों में कोविड से पैदा हुए आर्थिक ठहराव के बावजूद कोई अवसाद नहीं है।
भारत के आईआईटी संस्थान देश में ही नहीं, वरन विश्व भर में अपनी बेहतरीन शैक्षणिक गुणवत्ता से धाक जमा चुके हैं। नियोक्ताओं के लिए आईआईटी और आईआईएम सबसे ज्यादा आकर्षण के केंद्र होते हैं। वर्ष १९५१ में आईआईटी, खड़गपुर का उद्घाटन जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने किया, तब उन्होंने अपने भाषण में उम्मीद जताई थी कि ये संस्थान एक दिन भारतीय अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण की नींव बनेंगे। आज उस सपने के सच होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
आईआईटी, खड़गपुर की तरह आईआईटी, मुंबई इंजीनियरिंग के शीर्ष संस्थानों में गिना जाता है। इसकी स्थापना १९५८ में हुई थी और यहां प्लेसमेंट के लिए देश-विदेश की बड़ी-बड़ी कंपनियां आती हैं। प्लेसमेंट के पहले दिन ही माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, एपल, बीसीजी जैसी अनेक विश्वस्तरीय कंपनियों को देखा गया।
हाल ही में २०२०-२१ के प्लेसमेंट सीजन के पहले दो दिन में ३५ कंपनियों ने ४०० नौकरियां बांटीं और सोनी, जापान ने १.६३ करोड़ रुपये (करीब १३ लाख रुपये मासिक) का वार्षिक पैकेज दिया, जो सर्वाधिक रहा।अगले कुछ महीनों तक करोड़ों रुपये के पैकेज दिए जाने की खबरें अखबारों व टीवी चैनलों पर चर्चा का विषय बनती रहेंगी, लेकिन हमें यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि ऐसी ही मोटी तनख्वाह आईआईटी संस्थानों में तमाम विद्यार्थियों को मिलती होगी। मिसाल के तौर पर, अभी तक की बात करें, तो आईआईटी, मुंबई का औसत पैकेज करीब १६,०६ लाख रुपये वार्षिक रहा है, जो पिछले साल २०.०८ लाख रुपये था। आईआईटी, मुंबई का वार्षिक पैकेज ऊंचा इसलिए भी रहता है, क्योंकि वहां प्लेसमेंट के लिए ज्यादा विदेशी कंपनियां आती हैं।
लेकिन करोड़ रुपये के पैकेज की उत्साहवद्र्धक खबर से हमें अभिभूत होकर उन तथ्यों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए, जो भारत में उच्च शिक्षा के कटु विरोधाभासों को उजागर करते हैं। देश के 4,800 इंजीनिरिंग कॉलेजों में सभी जगह यह नजारा नहीं मिलेगा। पिछले कुछ वर्षों में इंजीनियरिंग-शिक्षा में संकट लगातार बढ़ा है, इसके कई कारण हैं। सैकड़ों इंजीनियरिंग कॉलेज या तो बंद हो चुके हैं या बंदी के कगार पर हैं। एआईसीटीई उन कॉलेजों की मान्यता भी रद्द कर रही है, जो न्यूनतम संख्या में भी दाखिले नहीं कर पा रहे हैं।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार अभी देश के ४८०० इंजीनियरिंग कॉलेजों में करीब १५ लाख सीटें हैं। सवाल यह है कि भारत की इंजीनियरिंग शिक्षा में ऐसी स्थिति क्यों आई? वर्ष २००७ तक देश में इंजीनियरिंग कॉलेज धड़ाधड़ खोले जा रहे थे, किंतु २००८ की विश्व व्यापी मंदी के बाद इसमें अचानक ब्रेक लग गया। बीता पिछला दशक तो इंजीनियरिंग शिक्षा के लिए मंदी का दौर ही कहा जाएगा। अब हम अगर रोजगार के बाजार में इंजीनियरिंग की नौकरियों के रुझान की बात करें, तो सिर्फ कंप्यूटर साइंस और आईटी जैसी ब्रांचों में ही नौकरियां मिल रही हैं। सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और केमिकल इंजीनियरिंग में न तो दाखिले हो रहे हैं और न ही ज्यादा नौकरियां मिल रही हैं।
देश के हजारों इंजीनियरिंग कॉलेज नियोक्ताओं और विद्यार्थियों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे। ये कॉलेज दाखिले के समय जो भी वायदे करें, पर यहां के विद्यार्थियों को १५ -२० हजार रुपये मासिक वेतन की नौकरियां ही मिल पाती हैं। इन कॉलेजों के पास न तो अच्छे शिक्षक हैं और न इन कॉलेजों के पास उद्योग-धंधे हैं। आईआईटी संस्थानों की श्रेष्ठ गुणवत्ता सराहनीय है, किंतु यह भारत की इंजीनियरिंग शिक्षा का एक बहुत छोटा हिस्सा है।
देश के ४८०० इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्लेसमेंट कुछ महीने बाद शुरू होंगे। देखना है, कंपनियां इस बार कितने युवा इंजीनियरों को रोजगार दे पाती हैं? आज के हालात में जरूरी है कि केंद्र सरकार कॉरपोरेट जगत के कर्णधारों से बात करे, ताकि लाखों इंजीनियरों को रोजगार मिल सके। क परीक्षा पास करने वाले लाखों विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों पर शिक्षा ऋण भी होगा।जिन इंजीनियरों को रोजगार न मिल पाए, उनके ऋण भुगतान को तब तक स्थगित किया जा सकता है, जब तक कि उन्हें रोजगार न मिल पा ए, उनके लिए ,शिक्षा मंत्रालय को इंजीनियरिंग शिक्षा के पुनरुत्थान के लिए एक विशिष्ट योजना बनानी चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।