पत्रकार भवन : खंडहर बता रहे हैं, इमारत बुलंद थी - Pratidin

Bhopal Samachar
हर साल दिसम्बर में अमूमन सारा मीडिया बीते साल का पुनरवलोकन करता है | भोपाल में भी एक  पुनरवलोकन पत्रकार भवन का | पत्रकार भवन मलबा उस शेर को दोहरा रहा है |”खंडहर बता रहे हैं, इमारत बुलंद थी |” पिछले बरस इसी दिन दिन भोपाल में पत्रकार भवन शहीद कर दिया गया | तब सरकार  किसी और पार्टी की थी अब किसी और पार्टी की है | वो गिरा गई, इसने मलबा तक साफ़ नहीं कराया, वादे  दोनों ने किये थे | न उन्हें पश्चाताप है, न इन्हें कोई फ़िक्र |

 वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर ने पिछले साल इस दुर्घटना पर  एकदम सही बात कही थी कि “अगर परहेज नहीं बरता होता, तो पत्रकार भवन के साथ यह गुनाह नहीं होता|”  आज मलबे का ढेर वही बात प्रमाणित कर रहा है | काश ! हम सारे परहेज दरकिनार रख कर एक होते | इसी परहेज के कारण पत्रकारिता में श्रद्धा के साथ लिय जाने वाले नामों के छायाचित्र तक एक बरस बाद भी मलबे से नहीं निकाल सके| उन सारे तपस्वियों की तपस्या चौराहे पर आ गई, जिन्होंने १९६९ में पत्रकार भवन समिति का गठन किया था और इसे एक आदर्श संस्था बनाकर श्रमजीवी पत्रकारों सर्वागीण विकास के सपने देखे थे | पत्रकार भवन समिति अविभाजित मध्यप्रदेश में पत्रकारों की प्रतिनिधि संस्था थी | छत्तीसगढ़ ही नहीं अन्य राज्यों के साथ महानगरों से प्रकाशित समाचार पत्रों के भोपाल स्थित सम्वाददाता इस समिति के स्वत: सदस्य हो जाते थे | श्रमजीवी पत्रकार संघ के सदस्य १ रुपया नाम मात्र का शुल्क संघ  की सदस्यता के साथ जमा करते थे |

जिन द्धिचियों ने हवन में अपने खून पसीने की आहुति दी, वे अब स्मृति शेष हैं | उनके योगदान की इस दुर्दशा पर नाराजी व्यक्त करने के लिए भी शब्द नहीं है | उन्हें प्रणाम! ,स्मृति शेष स्व. श्री धन्नालाल शाह, स्व. श्री नितिन मेहता, स्व.श्री त्रिभुवन यादव, स्व.श्री प्रेम बाबू  श्रीवास्तव, स्व. श्री इश्तियाक आरिफ,स्व. श्री डी वी लेले स्व. श्री सूर्य नारायण शर्मा स्व.श्री वी टी  जोशी के सम्पर्क-स्वेद से इस भवन की नींव खड़ी है | भवन मलबे का ढेर है, सहेजने  लायक बहुत कुछ था , सब दफन | उस पीढ़ी के जो बुजुर्ग साथी मौजूद है, वे सिर्फ क्षोभ ही व्यक्त कर पा  रहे हैं |

इतिहास के उल्लेखनीय संघर्षों में भामाशाह याद आते हैं, और जब पत्रकार भवन के सामने से गुजरते हैं,तो दूसरे ‘शाह’ धन्नालाल याद आते हैं, जिनका योगदान इस भवन के लिए भामाशाह से भी अधिक रहा है | भामाशाह ने तो अपनी तिजोरी का मुंह राणा प्रताप के लिए खोला था | शाह साहब ने तो कई दिनों भोजन बाद में किया, पहले पत्रकार भवन के लिए ५ लोगों से चंदा लिया | इस पूरी टीम के सपने थे, पत्रकार भवन में एक बड़ा पुस्तकालय,पत्रकारिता के व्यवसायिक प्रशिक्षण हेतु एक स्कूल, बीमारी या अन्य कारणों से अभावग्रस्त पत्रकारों को सम्बल | अफ़सोस उनके बाद हम सब यह नहीं कर पाए |

थोडा इतिहास |  सन् १९६९  में वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल और नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट नाम की पत्रकारों की प्रतिष्ठित यूनियन थी। संख्या बल आई ऍफ़ डब्लू जे  के साथ ज्यादा था | इसी कारण  इसी संस्था को म.प्र. सरकार ने कलेक्टर सीहोर के माध्यम से राजधानी परियोजना के मालवीय नगर स्थित प्लाट नम्बर एक पर २७००७  वर्ग फिट भूमि इस शर्त पर आवंटित की थी, कि यूनियन पत्रकारों के सामाजिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, शैक्षणिक उत्थान व गतिविधियों के लिये इमारत का निर्माण कर उसका सुचारू संचालन करेगी। उस समय मुख्यमंत्री पं श्यामाचरण शुक्ल थे। 

इस काल में दिल्ली में सक्रिय आईएफडब्लूजे विभिन्न प्रान्तों में पत्रकार संगठनों को सम्बद्धता दे रहा था। इसके अध्यक्ष उस समय स्व.रामाराव थे। आईएफडब्लूजे ने वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल को सम्बद्धता दी थी। इमारत बनने के बाद इसकी विशालता व भव्यता के चर्चे देश  में होने लगे। भारत सरकार का पत्र सूचना विभाग बरसों तक पत्रकार भवन समिति का किरायेदार भी रहा | इसमें बाहर से आये पत्रकरों के ठहरने की सुविधा भी थी, कई बड़े नामचीन अख़बारों के संवाददाताओं ने यहाँ महीनों पनाह पाई है | पत्रकार वार्ता के केंद्र  के रूप में इसकी पहचान थी |  स्व. रमेश की चर्चा के बगैर पत्रकार भवन की बात अधूरी है, अत्यंत कम पारिश्रमिक पर उन्होंने पत्रकार भवन समिति, भवन और अतिथियों की सेवा की | तभी किसी की नजर लग गई और भोपाल की पत्रकारिता का मरकज परहेज का बायस हो गया | कालान्तर में श्रमजीवी पत्रकार टूटने लगा और अब मौजूदा कई टुकड़ों को जोड़ने के बाद भी वैसी शक्ल बनना नामुमकिन है, कोशिश भी करें तो आपसी परहेज साम्प्रदायिकता से भी गहरे हैं  | बाद में संगठन का नाम बदल कर श्रमजीवी पत्रकार संघ कर लिया गया। श्री शलभ भदौरिया ने १९९२  में म.प्र.श्रमजीवी पत्रकार संघ नाम से अपना अलग पंजीयन करा लिया। वैसे इस कहानी में और भी पेंचोंखम हैं, उन्हें छोड़िये|

आगे क्या हो, यह महत्वपूर्ण है | जमीन सरकारी थी, है और रहेगी, इससे किसी को गुरेज़ नहीं |  जनसंपर्क विभाग इसे एक आधुनिक मीडिया सेंटर के रूप में विकसित करेगा, पर कब किसी को पता नहीं  | सरकार के उद्देश्य पर कोई संदेह नहीं, कुछ होता दिखे कम से कम मलबा हटे | किसी राजनीतिक दल का  नहीं, सरकार का आश्वासन प्रवाहमान बना रहे और संस्था की खोई साख लौटे |इसके लिए लिए ही यह  मर्सिया | काश !हम एक होते |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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