नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार किसी ऐसी योजना पर विचार कर रही है जिसके कारण ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को सीधे प्रभावित किया जा सके। नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि अनुसूचित जाति जनजाति की योजनाओं के लिए जारी होने वाले बजट का 40% यदि हितग्राहियों को कैश ट्रांसफर कर दिया जाए तो बिना ₹1 अतिरिक्त खर्च किए अनुसूचित जाति एवं जनजाति के परिवारों को प्रतिमाह ₹5000 के लगभग दिया जा सकता है।
अंग्रेजी अखबार द इकॉनमिक टाइम्स की इस रिपोर्ट के मुताबिक, नीति आयोग की ओर से ऐसी अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। वहीं अब तक भारत सरकार ने भी ऐसे किसी प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं दी है लेकिन खबर लीक हो गई है और सुर्खियों में है। बताया गया है कि योजनाओं के बजट से बचा हुआ 60 प्रतिशत पैसा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर खर्च किया जाएगा। इस तरह सरकार दोनों तरफ से फायदे में रहेगी।
क्या यह आइडिया लागू हो सकता है?
1970 के दशक के बाद से केंद्र सरकार ने SCSP और TSP के तहत SC और ST समुदायों के विकास के लिए कुल आबादी में उनके हिस्से के अनुपात में धनराशि निर्धारित की है। इसका मतलब है कि योजना निधि के 2011 की जनगणना के अनुसार 16.6% (जनसंख्या में SC का हिस्सा) SCSP और 8.6% (जनसंख्या में ST का हिस्सा) TSP के रूप में खर्च किया जाना था। हालांकि 2017-18 में बजट की योजना और उप-योजना घटकों को मिला दिया गया था, फिर भी मंत्रालयों के लिए कुछ फीसदी खर्च करना आवश्यक है। आबादी में एससी (8.3%) और एसटी (4.3%) की हिस्सेदारी का कम से कम आधा हिस्सा, केंद्रीय क्षेत्र पर उनके खर्च और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण पर केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर किया जाना चाहिए। SCSP और TSP के लिए कुल बजट 83,257 करोड़ रुपये और 2020-21 के बजट में 53,653 करोड़ रुपये था।
पिछले पांच वर्षों में, SCSP और TSP के तहत कुल खर्च बजट के आकार में 2.8% से 4.5% तक बढ़ गया है। हालांकि 2019-20 और 2020-21 के आंकड़े रिवाइज हो कर कम हो सकते हैं। साल 2020-21 में इन योजनाओं के तहत धन आवंटित करने वाले 33 में से सिर्फ आठ मंत्रालय कुल खर्च का 80% हिस्सा थे। इसमें शिक्षा मंत्रालय, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, और कृषि और किसान कल्याण शामिल है।
नीति अयोग द्वारा केंद्रीय कल्याण के तहत विभिन्न मंत्रालयों द्वारा इस लोक-कल्याण खर्च को एक में ही शामिल करने के लिए दिए गए। इसका कारण यह है कि वर्तमान में यह खर्च SC और ST समुदायों के लिए बनने वाली योजनाओं का हिस्सा नहीं है। कई एक्टिविस्ट्स भी यही कहते रहे हैं। एक गैर-सरकारी संगठन दलित मानवाधिकार (एनसीडीएचआर) पर राष्ट्रीय अभियान द्वारा 2020-21 के संघ बजट में अधिकांश SCSP और TSP योजनाओं (कुल आवंटन का 83% शामिल है) का विश्लेषण किया। उदाहरण के लिए केवल 34% योजनाएं ऐसी पाई गई जिनकी धनराशि से एससी और एसटी समुदायों के लिए विकास कार्य हो रहे थे। नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित 40% कैश ट्रासंफर इस आंकड़े में सुधार कर सकता है।
प्रति व्यक्ति बांटे तो यह कितना होगा?
अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार बीते तीन बजटों में, एससी और एसटी के कल्याण के लिए किए गए आवंटन में से 40% 36,493 करोड़ रुपये, 48,882 करोड़ रुपये और 54,764 करोड़ रुपये हिस्सा इस कैश ट्रांसफर नीति के तहत आएगा। नीति आयोग के प्रस्ताव के अनुसार इसे अगर प्रति व्यक्ति बांटे तो यह कितना होगा? आयोग ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि 5,000 रुपए प्रति माह कमाने वाले परिवार के लिए इसे लागू किया जा सकता है।
श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2018-19 भारत में 263.9 मिलियन परिवार हैं, जिनमें से 51.8 मिलियन और 23.5 मिलियन एससी-एसटी के घर हैं। एससी-एसटी परिवारों की 5,000 रुपये से कम आय का हिस्सा 11.6% और 19.2% है, जो लगभग 9.2 मिलियन घरों के हिस्से आता है। इसका मतलब है कि अगर साल 2020-21 के बजट में किए गए आवंटन का उपयोग किया जाए तो हर घर को प्रति माह 4,959 रुपये का कैश ट्रांसफर मिल सकता है। अगर यह कैश ट्रांसफर की सीमा प्रति माह 10,000 रुपये तक बढ़ाई जाती तो यह प्रति परिवार 1,310 रुपये कैश ट्रांसफर मिल सकता है।
बुनियादी ढांचे के विकास पर खर्च
Niti Aayog ने प्रस्ताव दिया है कि शेष 60% मौजूदा SCSP और TSP राशि SC और ST के ज्यादा आबादी वाले जिलों में बुनियादी ढांचे के विकास पर खर्च किया जाना चाहिए। अगर ऐसा कुछ होता है पश्चिम बंगाल को इसका सबसे ज्यादा लाभ मिलेगा। पश्चिम बंगाल के लगभग 90 फीसदी जिले (2011 की जनगणना के अनुसार) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सबसे अधिक आबादी वाले शीर्ष 20% जिलों में से हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के तीन-चौथाई जिले (2011 की जनगणना के अनुसार 23 जिलों में से 17) भी शीर्ष 20% जिलों में शामिल हैं।
हालांकि PLFS के सर्वे में उन सामाजिक समूहों के 13% परिवारों को शामिल नहीं किया गया है कि जिनके पास कमाई करने वाला सदस्य नहीं है। साथ ही किराया या निवेश पर मिल रहे ब्याज से हो रही आमदनी से जुड़े लोगों को शामिल नहीं किया गया है।