भोपाल। मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, लेकिन रिकॉर्ड में यह कमी नजर नहीं आती क्योंकि 12000 कर्मचारी दस्तावेजों में बतौर शिक्षक पदस्थ है परंतु स्कूल छोड़कर सरकारी दफ्तरों में मलाईदार कुर्सियों पर जमे हुए हैं। मध्य प्रदेश के शिक्षा विभाग में बड़े पैमाने पर प्रतिनियुक्ति घोटाला हो रहा है। यदि प्रति नियुक्तियां समाप्त कर दी जाए तो हजारों पद रिक्त हो जाएंगे और बेरोजगारों को सरकारी नौकरी मिलेगी।
18000 सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की जरूरत
एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश के करीब 18 हजार ऐसे सरकारी स्कूल है, जो एक शिक्षक के भरोसे चल रहा है। वहीं कई स्कूलों प्राचार्य नहीं है, इस कारण प्रभारी प्राचार्य प्रबंधन का कार्य देख रहे हैं। सरकार जब शिक्षकों की नियुक्ति के लिए रिक्त पदों की गणना करती है तो 12000 पदों की गणना नहीं होती क्योंकि सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार शिक्षक पदस्थ हैं परंतु असल में वह प्रतिनियुक्ति में किसी दूसरे दफ्तर में काम कर रहे हैं।
सिर्फ खानापूर्ति के लिए हर साल अटैचमेंट समाप्ति के आदेश जारी होते हैं
सरकारी व्यवस्था में पुलिस विभाग का फील्ड स्टाफ और शिक्षक दो ऐसे पद हैं, जिन से दूसरा काम नहीं लिया जाना चाहिए। यदि इनसे दूसरा काम लिया गया तो समाज की व्यवस्था प्रभावित होती है। बावजूद इसके 12000 शिक्षक प्रतिनियुक्ति का आनंद उठा रहे हैं। विभाग की ओर से शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति व अटैचमेंट समाप्त कर उन्हें मूल संस्था में लौटने का आदेश कई बार जारी किया गया है, लेकिन केवल खानापूर्ति के लिए। आदेश की अवहेलना करने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जाती।
केके द्विवेदी, उपसचिव, स्कूल शिक्षा विभाग का बयान
विभाग लगातार प्रयास कर रहा है। स्कूल शिक्षा मंत्री की भी मंशा है कि शिक्षकों को उनके मूल कार्य से जोड़ा जाए। जल्द ही फिर से इस निर्देश का पालन करवाया जाएगा।
प्रतिनियुक्ति मामले में नए नियम की दरकार
मध्य प्रदेश में कर्मचारियों के प्रति नियुक्ति के मामले में नए नियम की दरकार है। वर्तमान में नियम है कि कोई भी कर्मचारी 2 साल से अधिक प्रतिनियुक्ति पर नहीं रह सकता लेकिन नियमों की किसी किताब में यह नहीं लिखा कि यदि कर्मचारी 2 साल से अधिक प्रतिनियुक्ति पर है तो उसके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी। बताने की जरूरत नहीं कि प्रतिनियुक्ति एक स्थाई व्यवस्था है, लेकिन मध्यप्रदेश की स्थिति यह है कि कुछ शिक्षकों की तो सामाजिक पहचान ही बदल गई है। लोगों को पता ही नहीं कि उनका मूल विभाग, शिक्षा विभाग है और उनकी नियुक्ति बच्चों को पढ़ाने के लिए की गई है।