नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान देश भर की राज्य सरकारों को निर्देशित किया है कि वह वन विभाग के ऐसे कर्मचारी जो फील्ड में तैनात होते हैं, आधुनिक हथियार और बुलेट प्रूफ जैकेट उपलब्ध कराएं। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वन माफिया का की ताकतवर है और उनके सामने फारेस्ट डिपार्टमेंट के लोग कमजोर पड़ जाते हैं।
वन माफिया के पास काला धन है, प्रवर्तन निदेशालय को शामिल किया जाए: उच्चतम न्यायालय
पीठ 25 साल पुरानी टीएन गोदावर्मन तिरुमुल्पाद की जनहित याचिका में दाखिल एक अंतरिम आवेदन पर विचार कर रही थी। पीठ ने कहा कि इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय को शामिल किया जाना चाहिए। इसमें अलग से वन्यजीव प्रकोष्ठ होना चाहिए। यह सब अपराध से अर्जित धन है।
राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में फॉरेस्ट ऑफिसर पर हमले हो रहे हैं
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान के इस कथन का संज्ञान लिया कि वन अधिकारियों पर होने वाले हमलों में भारत की हिस्सेदारी 38% है। उन्होंने राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में वन अधिकारियों पर हमले की घटनाओं की ओर पीठ का ध्यान आकर्षित किया। दीवान ने कहा, 'फारेस्ट रेंजरों पर बर्बरतापूर्ण हमले किए जा हैं। यही नहीं, ये लोग इन अधिकारियों के खिलाफ भी मामले दर्ज करा रहे हैं।'
केवल लाठी के बल पर कैसे करेंगे मुकाबला
पीठ ने कहा, 'हम जब असम जाते हैं, तो (देखते हैं) उन्हें हथियार दिए गए हैं, जबकि महाराष्ट्र में उनके पास सिर्फ लाठी होती है।' पीठ ने कहा कि सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता, श्याम दीवान और एडीएन राव द्वारा फारेस्ट रेंजरों की रक्षा के बारे में वक्तव्य दिये जाने के बाद इस मामले में उचित आदेश पारित किया जाएगा।
बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट दिए जाएं: सर्वोच्च न्यायालय
आवेदन पर सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने कहा, 'हम निर्देश देंगे कि अधिकारियों को हथियार, बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट दिए जाएं।' कर्नाटक में वन अधिकारियों को 'चप्पलों' में ही घूमते देखा जा सकता है और वन्यजीवों के शिकार करने वाले उन्हें झापड़ तक मार देते हैं। हम चाहते हैं कि सुनवाई की अगली तारीख पर सॉलीसिटर जनरल वक्तव्य दें कि वन विभाग के फील्ड कर्मचारियों को हथियार दिए जाएंगे।'
रेंजरों पर दर्ज कराए जा रहे झूठे केस
पीठ ने अपने आदेश में इस बात को दर्ज किया कि विभिन्न राज्यों में फॉरेस्ट रेंजरों पर हमले किए जा रहे हैं और उन्हें अपने कर्तव्य से विमुख करने के लिए उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराए जा रहे हैं। पीठ ने कहा, 'यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि इतने व्यापक भूक्षेत्र में गैरकानूनी गतिविधियां जारी रखने वाले इन शिकारियों से किस तरह वन अधिकारियों की रक्षा की जाए। घातक हथियारों से लैस शिकारियों की तुलना में निहत्थे वन अधिकारियों द्वारा किसी भी कानून को लागू करा पाना बहुत मुश्किल है।'
जंगल में मदद के लिए किसी को बुला भी नहीं सकते
पीठ ने इस मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिए स्थगित करते हुए कहा कि संबंधित अधिवक्ताओं के वक्तव्यों को ध्यान में रखते हुए उचित आदेश पारित किया जाएगा। इन शिकारियों द्वारा वन अधिकारियों पर हमला किए जाने की स्थिति में ये अधिकारी जंगल में मदद के लिए किसी को बुला भी नहीं सकते हैं। जिस तरह शहरों में मदद के लिए पुलिस को बुलाया जा सकता है, उसी तरह की कोई न कोई व्यवस्था वन अधिकारियों के लिए भी होनी चाहिए।