जबलपुर। मध्यप्रदेश तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ ने जारी विज्ञप्ति में बताया कि जिस प्रकार केंद्रीय कर्मचारियों को गृह निर्माण हेतु शासन द्वारा 25 लाख रुपए या 34 माह के मूल वेतन के बराबर की राशि एडवांस दी जाती है। इतना ही नहीं कोई कर्मचारी घर का रिनोवेशन मरम्मत कार्य घर का विस्तार या पुनर्निर्माण करवाता है तो सरकार अधिकतम दस लाख रुपए की सहायता देती है।
जबकि प्रदेश के कर्मचारियों को शासन स्तर पर लंबी प्रक्रिया के बाद बैंकों के चक्कर लगाने के बाद ग्रह निर्माण हेतु ऋण मिलता है तथा वह इतना कम होता है कि इसमें सर्व सुविधा युक्त घर का निर्माण संभव नहीं होता। इस प्रकार मध्यप्रदेश में कर्मचारी राज्य सरकार की उपेक्षा पूर्ण नीति के चलते सदैव आर्थिक रूप से बिछड़ते जा रहे हैं। 2005 के बाद मध्यप्रदेश शासन ने कर्मचारियों को गृह निर्माण हेतु ऋण देना पूर्णत: बंद कर दिया है, जिससे एक अच्छे घर का सपना मात्र सपना बनकर रह गया है।
संघ के अरवेंद्र राजपूत, अवधेश तिवारी, आलोक अग्निहोत्री, मुन्ना लाल पटेल, आशुतोष तिवारी, चंदू जाउलकर, राजेंद्र खरे, मिर्जा मंसूर बेग, बलराम नामदेव, दुर्गेश पांडे, बृजेश मिश्रा, सतीश उपाध्याय, मुकेश मिश्रा, शरद मिश्रा, मनोज सिंह, वीरेंद्र चंदेल, एस बी बाथरे, तुषेन्द्र सेंगर, नीरज कौरव, जवाहर लोधी, पंकज जायसवाल, योगेश कपूर, सतीश देशमुख, चूरामन गुर्जर, नवीन यादव, शैलेंद्र दुबे, वीरेंद्र पटेल, दिलीप खरे, सी एन शुक्ला, परशुराम तिवारी, संतोष तिवारी, प्रियांशु शुक्ला, मोहम्मद तारिक, धीरेंद्र सोनी आदि ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि मध्य प्रदेश राज्य के कर्मचारियों को भी केंद्र के समान गृह निर्माण हेतु ऋण प्रदान किया जाए।