इंदौर। आरोप लगाने के लिए पर्याप्त कारण है कि सरकार इंदौर हाई कोर्ट के न्याय शेत्र में आने वाले नागरिकों के न्याय पाने के मूल अधिकार को बाधित करने की कोशिश कर रही है। यह ठीक उसी प्रकार है जैसे किसी का रास्ता जाम कर दिया जाए। दरअसल, इंदौर हाई कोर्ट में 10 जजों के लिए पद मंजूर है परंतु वर्तमान में हाईकोर्ट में केवल 5 जज काम कर रहे हैं। इसके कारण लोगों को न्याय मिलने में देरी हो रही है।
दिसंबर 2020 तक मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ में 10 के स्थान पर 6 जज सुनवाई कर रहे थे। इनमें से एक जस्टिस एसके अवस्थी ने अपने पद से इस्तीफा राष्ट्रपति कार्यालय को भेज दिया है। नई भूमिका में उन्होंने औद्योगिक न्यायालय इंडस्ट्री कोर्ट के चेयरमैन का पदभार ग्रहण कर लिया है। जस्टिस अवस्थी के जाने के बाद अब इंदौर खंडपीठ में केवल 5 जज ही रह गए हैं। साथ ही जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव रोस्टर के तहत प्रिंसिपल बेंच जबलपुर में सुनवाई कर रहे हैं। इस वजह से यहाँ फिलहाल केवल चार जज ही सुनवाई के लिए उपलब्ध है।
इंदौर खंडपीठ में 10 जजों के पद स्वीकृत हैं। इंदौर खंडपीठ में 2 साल से नए जज नहीं भेजे गए। जबकि इस दौरान 10 वकीलों के नाम जजेस के लिए कॉलेजियम के जरिए भेजे गए परंतु सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम इन नामों पर विचार ही नहीं कर रहा है। जबकि जज लगातार रिटायर्ड भी हो रहे हैं। इस साल 8 तो अगले साल 3 जज रिटायर होंगे। मध्य प्रदेश में हाई कोर्ट की प्रिंसिपल बेंच व दो खंडपीठ को मिलाकर जज के 40 स्थाई पद स्वीकृत हैं और 13 अस्थाई पद है। उल्लेखनीय है कि सन 2012 में सुब्रमण्यम स्वामी की एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भ्रष्टाचार मुक्त सरकारी व्यवस्था और न्यायालय से उचित समय पर न्याय प्राप्त करना नागरिक का मूल अधिकार है।