समाज में कुछ ऐसे तत्व हमेशा उपस्थित होते हैं जो शांति भंग करने की साजिश करते रहते हैं। नेताओं का एक प्रकार ऐसा भी होता है जो जनता की भावनाओं को भड़का कर ही बड़ा नेता बनता है। हो सकता है जनता की भावनाओं को भड़काने के लिए उसके संगठन में उसे प्रमोशन दिया जाए परंतु भारतीय दंड संहिता में ऐसे लोगों को जेल में बंद करने के पूरे प्रावधान किए गए हैं।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 153 की परिभाषा:-
अगर किसी व्यक्ति की लापरवाही से कोई दंगा या बल्वा उत्पन्न हो जाता है जैसे:- बातों बातों में किसी को बल्वा के लिए उकसाना, कोई भी विज्ञापन, सार्वजनिक पोस्टर (पर्चियों), भाषणों द्वारा, कोई भी फिल्मों द्वारा, या कोई विशेष व्यक्ति या राष्ट्र के द्वारा आदि। से कोई बल्वा उत्पन्न होता है तब वह व्यक्ति जो बल्वा या दंगा को उत्पन्न करता है वह धारा 153 के अंतर्गत दोषी होगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 153 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
यह अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते हैं यह संज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई निम्न प्रकार से होती है:-
1.अगर बल्वा हो गया हो तब किसी भी मजिस्ट्रेट के पास सुनवाई हो सकती है, सजा- एक वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दाण्डित किया जा सकता है।
2. अगर बल्वा नहीं हुआ है सिर्फ लोगो ने विरोध किया है तब इसकी सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है,सजा- छः माह की कारावास या जुर्माना या दोनो से दाण्डित किया जा सकता है।
उधरणानुसार वाद:- इंद्रसिंह बनाम राज्य- आरोपी ने ध्वजारोहण हो जाने के बाद ध्वज की डोरी की गांठ ढीली करके झंडे को नीचे गिराकर रौद डाला। न्यायालय द्वारा आरोपी को धारा 153 का दोषी माना क्योंकि उसने जानबूझकर ध्वज का अपमान करके वहाँ उपस्थित लोगों की भावनाओं को भड़काने का कुकृत्य किया था।