यह प्रमाणित हो गया है कि पिछले 38 दिनों से दिल्ली की सीमा पर जुटे किसान देश सबसे संपन्न किसान हैं। वे लंबे समय से देश की शान और इसकी खाद्य सुरक्षा के आधार रहे हैं। इसके साथ ही वे देश के अन्य किसानों की भांति प्रकृति के सबसे नजदीक होने से अन्य शहरियों के मुकाबले ज्यादा सम्पन्न हैं। सबके पेट भरने वाले किसान और किसानी की सूरत बदलने के लिए कुछ तथ्य और कथ्य।
वर्ष 1951 में रोजाना अन्न और दाल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता क्रमशः ३३४.७ और ६०.७ ग्राम थी। अब यह आंकड़ा क्रमशः ४५१,७ और ५४.४ ग्राम है। साल २००१ में तो दालों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता मात्र २९.१ ग्राम रह गयी थी। इससे इंगित होता है हमारे देश के किसान ने कितना परिश्रम किया है और हमारी राष्ट्रीय खाद्य नीति एक दिशा विशेष में चली है। इस प्राथमिकता का सबसे बड़ा उत्प्रेरक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की नीति रही है। हालांकि एमएसपी के तहत २३ चीजें सूचीबद्ध हैं, पर व्यवहार में यह मुख्य रूप से धान और गेहूं के लिए है। ऐसे मूल्य दलहन और तिलहन के लिए हमेशा नहीं दिये जाते, जिनके कारोबार में भारतीय आयातक विदेशी विक्रेताओं व उत्पादकों के साथ निकटता से जुड़े हुए हैं।
सबको यह मालूम होना चाहिए कि गेहूं व धान के अलावा अन्य अनाजों और कपास के लिए कोई समर्थन मूल्य नहीं है, केवल बातें होती हैं। एमएसपी कई तरह से भारत की खाद्यान्न प्रणाली की जड़ प्रकृति को प्रतिबिंबित करता है, जिसमें खरीद सबसे अधिक दाम पर होती है और उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत सबसे काम दाम पर बेचा जाता है। पीडीएस के अंतर्गत ८०.९ करोड़ भारतीय लाभार्थी हैं. यह संख्या कुल अनुमानित आबादी का ५९ प्रतिशत है। इसके बावजूद १० करोड़ से अधिक लोग इससे वंचित हैं, जिन्हें यह लाभ मिलना चाहिए। यह पूर्ति तभी हो सकती है जब किसान संतुष्ट हो।
अभी तो एमएसपी मूल्य समुचित दाम पाने का अंतिम विकल्प होने की जगह पहला विकल्प है। इसका यह असर हुआ कि पंजाब, हरियाणा, उत्तरी तेलंगाना और तटीय आंध्र प्रदेश जैसे कुछ क्षेत्रों में अनाज का बहुत अधिक उत्पादन होने लगा और इस उत्पादन का बड़ा हिस्सा एमएसपी के तहत खरीदा जाने लगा। इस साल पंजाब और अन्य राज्यों में बहुत अच्छी पैदावार होने से यह समस्या और भी बढ़ गयी।
बहुत कम चावल खानेवाले राज्य पंजाब में इस साल धान का कुल उत्पादन पिछले साल की तुलना में लगभग ४० लाख मीट्रिक टन बढ़कर २१० लाख मीट्रिक टन से अधिक सम्भावित है।पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश आदि अनेक राज्यों में एमएसपी पर खरीद २३ प्रतिशत से अधिक बढ़ गयी है। इसबार केंद्र ने दिसंबर के दूसरे सप्ताह तक ४११.५ लाख मीट्रिक टन धान की खरीद की है।
देशभर में हुई इस खरीद में से अकेले पंजाब से ४९.३३ प्रतिशत यानी २०२,७७ लाख मीट्रिक टन की खरीद ३० नवंबर तक हुई है। सरकारी गोदामों में अनाज रखने की जगह नहीं है, पंजाब के लगभग ९५ प्रतिशत किसान एमएसपी प्रणाली के दायरे में हैं। इस कारण औसत पंजाबी किसान परिवार देश में सबसे धनी है। एक आम भारतीय किसान परिवार की सालाना आमदनी ७७,१२४ रुपये है, जबकि पंजाब में यह २,१६, ७०८ रुपये है।
उत्पादकता और सिंचाई की अच्छी व्यवस्था के साथ यह तथ्य भी अहम है कि पंजाब और हरियाणा में खेती की जमीन का औसत आकार क्रमशः ३.६२ और २.२२ हेक्टेयर है। इसके मुकाबले भारत का राष्ट्रीय औसत १.०८ हेक्टेयर है। हालांकि देश की ५५ प्रतिशत आबादी अभी भी खेती पर निर्भर है, लेकिन सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में इसका हिस्सा घटकर केवल १३ प्रतिशत रह गया है और इसमें लगातार गिरावट आ रही है।
किसानों की आत्महत्या भारतीय किसान की स्थिति का परिचायक बन चुका है। आबादी में ६० प्रतिशत किसान हैं, पर कुल आत्महत्याओं में उनका अनुपात मात्र १५.७ प्रतिशत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कृषि अर्थव्यवस्था के देश भारत में एक लाख आबादी में १३ आत्महत्याओं का अनुपात है, जो औद्योगिक धनी देशों के समान या उनसे कम है। भारत में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गरीब राज्यों में आत्महत्या की दर कम है, जबकि अपेक्षाकृत धनी राज्यों, जैसे- गुजरात और पश्चिम बंगाल, में यह दर अधिक है। इससे स्पष्ट है कि आत्महत्या और आमदनी का कोई संबंध नहीं है। कृषि में सरकारी आवंटन का बड़ा हिस्सा अनुदानों में जाता है, जो आज वृद्धि में बहुत मामूली योगदान देते हैं। उनसे सर्वाधिक लाभ धनी किसानों को होता है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।